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________________ प्रश्नोत्तरप्रवचन-२१ बात ही नहीं कर सकता। लेकिन पुराना जोर इस बात पर था कि पत्थर छोड़ो और इसलिए ऐसे लोग हैं जो पत्थर छोड़ने के आधार पर ही जिन्दगी भर जी रहे हैं कि हमने पत्थर छोड़े। उन्हें कुछ मिला कि नहीं, इसका कुछ पता नहीं, उन्हें आगे की सीढ़ी मिली कि नहीं, इसका कुछ पता नहीं क्योंकि मैं यह कहता हूँ कि यह हो सकता है कि पत्थर छोड़ दिए जाएं और होरे न मिले। लेकिन यह कभी नहीं हो सकता कि हीरे मिल जाएं और पत्थर न छोड़े जाएं। हाथ खाली भी रह सकते हैं। ___ त्याग की भाषा में बहुत से लोगों के हाथ खाली भी करवा दिए हैं । तो जिसके हाय खाली है, वह उन लोगों पर क्रोध से भर जाता है जिनके हाथ भरे हैं । इसलिए हमारा साधु-संन्यासी बहुत ग्लानि में जीता है। वह चौबीस घंटे उनकी निन्दा कर रहा है जिनके हाथ भरे है, जो भोग रहे हैं, जो जीवन में सुख पा रहे हैं। वह उन सब को गालियां दे रहा है; उनको नरक भेजने का इन्तजाम कर रहा है । उनको आग में जलवा डालेगा, वह इन्तजाम कर रहा है। यह उसकी मानसिक तृप्तियाँ है । वह खाली हाथ का आदमी उन लोगों से बदला ले रहा है, जिनके हाथ भरे हुए हैं और जो राजी नहीं है खाली हाथ करने को। और जो लोग उनके आस-पास इकटे हुए हैं उनको भी उसके हाथ खाली दिखाई पड़ते हैं, भरा हुआ कुछ दिखाई पड़ता नहीं। क्योंकि मेरा मानना यह है कि अगर भरा हुआ कुछ दिखाई पड़े तो स्वाभाविक होगा कि हम भी उसी यात्रा पर निकल जाएं जहाँ आदमी और भी भर गया है। आप एक संन्यासी के पास जाते हैं, एक त्यागी के पास जाते हैं तो आप भला कितनी ही प्रशंसा करें उसके त्याग की, आप कितना ही कहें कि 'बड़े हिम्मत का आदमी है, इसने यह छोड़ा, वह छोड़ा, लेकिन न तो उसकी आँखों में, न उसके व्यक्तित्व में, न उसके जीवन में, यह सुगंध दिखाई पड़ती है जो कुछ आने की है। मेरा मानना है कि अगर उसके जीवन में कुछ आ जाए तो वह भी त्याग की बातें बन्द कर दे क्योंकि वह भूल जाएगा उन पत्थरों को जो छोड़े हैं । अब हीरों की चर्चा होगी जो पाए हैं। लेकिन जो भो त्याग की बातें वह करते चला जा रहा है, अभी भी पत्थर छोड़ने की बातें करता चला जा रहा है, निश्चित है कि उसके हाथ में कुछ और नहीं पाया है। पत्थर छूट गए है । अब एक ही रस रह गया है कि मैंने इतने पत्थर छोड़े, मैंने यह छोड़ा, वह छोड़ा। यही उसका रस रह गया है । और हम जो चारो ओर इकट्ठे लोग हैं, हमें भी और कुछ दिखाई नहीं पड़ता है उसमें । सिर्फ छोड़ना दिखाई पड़ता है।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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