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________________ ६५० महावीर : मेरी रष्टि में . में यह कह रहा हूँ कि यह जो जीवन्त धारा है, इसे आकृष्ट करो। और यह तभी बाकृष्ट होगी जब विराट् जीवन का स्याल इसके सामने होगा कि छोड़ना नहीं है, पाना है । और छोड़ना होगा ही इसमें क्योंकि बिना छोड़े कुछ भी पाया नहीं जा सकता है। असम्भव ही है कि हम बिना छोड़े कुछ भी पा लें। कुछ भो हम पाने चलेंगे तो कुछ छोड़ना पड़ेगा। और इसलिए सवाल छोड़ने के विरोध का नहीं है। सवाल जोर का है, हम किस चीज पर जोर दें। भोग शब्द में बहुत निन्दा छिप गई है। वह त्यागियों ने पैदा की है। इसलिए मैं भोग का ही उपयोग करना चाहता हूँ, जानबूझ कर । क्योंकि वह जो भोग की निन्दा है, वह इन त्यागियों ने ही पैदा की है। वे कहते हैं कि भोग की बात ही मत करो, रस की बात ही मत करो, सुख की बात ही मत करो, क्योंकि त्याग करना है। मेरा कहना है कि यह पूरी की पूरी भाषा गलत हो गई है । इसने गलत तरह के आदमी को आकृष्ट किया है, स्वस्थ आदमी को आकृष्ट नहीं किया है। . . जीवन को भोगना है उसकी गहराइयों में । जीवन को जीना है उसकी आत्यन्तिक उपलषियों में, उसके पूर्ण रस में, उसके पूर्ण सौन्दर्य में । परमात्मा इन अर्थों में प्रकट होना चाहिए कि जो व्यक्ति जितना परमात्मा में जा रहा है उतने जीवन की गहराइयों में जा रहा है। अभी तक का नो त्यागवादी रुख था वह ऐसा था कि जो व्यक्ति परमात्मा की ओर जा रहा है, वह जीवन की ओर पीठ कर रहा है, वह जीवन को छोड़कर भाग रहा है, वह जीवन की गहराइयों में नहीं आ रहा है, वह जीवन को इन्कार कर रहा है। वह कहता है कि जीवन हमें नहीं चाहिए, हमें मृत्यु चाहिए इसलिए; वह मोत की बातें करता है । दूसरी ओर अगर कोई जीवन को मानकर चलेगा तो भी सब छूट जाएगा लेकिन तब उस छूटने पर जोर नहीं होगा। मेरा जोर यह है कि आपके हाथ में पत्थर है तो मैं आपसे नहीं कहता कि आप पत्थर फेंक दो। मैं आपसे कहता हूँ : सामने हीरों की खदान है। मैं नहीं कहता कि पत्थर फेंको। मैं कहता हूँ कि हीरे बड़े पाने योग्य हैं और सामने चमक रहे हैं । मैं यह जानता हूँ कि हाथ खाली करने पड़ेंगे। क्योंकि बिना हाथ खाली किए होरों से हाथ भरेंगे कैसे ? पत्पर छूट जाएंगे, लेकिन यह छूटना बड़ा सहज होगा। आपको शायद पता भी नहीं चलेगा कि अब आपने हाथ से पत्थर गिरा दिए और हीरे हाथ में भर लिए। शायद आपको ख्याल भी नहीं आएगा कि मैंने पत्थर छोड़े क्योंकि जिसे होरे मिल गए वह पत्थर छोड़ने की
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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