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________________ ६५६ महावीर : मेरी दृष्टि में मिट जाता है', ऐसा कहना भूल है । मेरा अस्तित्व मिट जाता है इतना ही कहना सही है । ईगो चली जाती है, बस्तित्व तो रहेगा। प्रश्न : नवी सागर में गई तो नवी का कैसे पता लगेगा? उत्तर : पता नहीं लगेगा लेकिन नदी है। अस्तित्व तो है। नदी में जो कण-कण था, वह खोया नहीं है, वह सब है। हाँ, नदी की तरह नहीं है, सागर की तरह है। और नदी की तरह अब नहीं खोजा जा सकता। नदी मर गई लेकिन नदी का जो अस्तित्व था वह पूरा का पूरा सुरक्षित है। प्रश्न : फिर माप कहते हैं कि छोड़ना तो आत्मघाती है। उत्तर : हाँ, बिल्कुल आत्मघाती है। छोड़ने को भाषा ही आत्मघाती है । नदी से मत कहो कि नदी होना छोड़ो । नवी से कहो कि सागर होना सीखो। नदी से मत कहो कि छोड़ो, नदी से कहो कि भोगो। विराटता के पहले रुको मत । दौड़ो, कूद जाओ सागर में, भोगो, सागर को भोगो। मुझे लगता है कि जगत् को ज्यादा पार्मिक जीवन दिया जा सकता है। क्योंकि जो हमारा सामान्य चित्त है और सामान्य चित्त का जो भाव है, वह भोगने का है, त्यागने का नहीं है । और सामान्य विरा को अगर धर्म की ओर उठाना है तो उसे विराट भोग का मामंत्रण बनाना चाहिए । अभी उल्टा हो गया है। जो छोटा-मोटा भोग चल रहा है उसके भी निषेध करने का आमंत्रण बना हआ है। उसे भी इन्कार करो। और यह मैं मानता हूँ कि अगर हम विराट को भोगने जाएंगे तो क्षुद्र का निषेध करना पड़ेगा। नदी को सागर बनना है तो वह नदी नहीं रह जाएगी। यह कोई कहने की बात नहीं है। नदी को सागर बनना है तो उसे नदी होना छोड़ना ही होगा। लेकिन इस बात पर जोर मत दो। ___ दो घटनाएं घट रही हैं । नदी मिट रही है-एक घटना। नदी सागर हो रही है-दूसरी घटना । किस पर जोर देते हैं, आप ? अगर सागर होने पर जोर देते हैं तो मैं मानता हूँ कि ज्यादा नदियों को आप आकर्षित कर सकते हैं कि वे सागर बन जाएं। अगर बाप कहते है कि नही मिट जाओ, सागर को बात मत करो तो शायद ही कोई एक बाष नदी को आप तैयार कर लें जो मिटने को राजी हो जाए, जो नदी होने से घबड़ा गई हो। बाकी नदियां तो रुक जाएंगी और कहेंगी: हम बहुत आनन्दित है। हमें नहीं मिटना है। हाँ मिटना तभी सार्थक है जब विराट का मिलना सार्थक हो रहा हो, अर्य दे रहा हो।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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