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महावीर : मेरी दृष्टि में सब ही 'मेरा' है, या कुछ भी ऐसा नहीं जो 'मेरा है और 'तेरा' है तो फिर कौन-सा घर है जो अपना है और कौन-सा घर है जो अपना नहीं है।
हमें एक ही बात दिखाई पड़ती है कि महावीर ने घर छोड़ा। वह क्यों दिखाई पड़ती है क्योंकि हम घर को पकड़े हुए हैं। हमारे लिए जो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है, वह यह कि इस आदमी ने घर क्यों छोड़ा क्योंकि हम घर को पकड़े हुए लोग हैं। घर को छोड़ने की बात ही असह्य है । यह कल्पना भी असह्य है कि घर छुड़ा लिया जाए । इस आदमी ने घर क्यों छोड़ा? लेकिन हम समझ नहीं पा रहे कि घर की धारणा क्या है?
महावीर ने घर छोड़ा या कि घर मिट गया ? जैसे ही जाना तो घर मिट गया। जैसे ही समझा तो मेरा और अपना कुछ भी न रहा। सबका सब हो गया। यह अगर हमें दिखाई पड़ जाए तो बड़ा फर्क पड़ जाता है। हम यहाँ बैठे हुए हैं । दस करोड़ मील दूर पर सूरज है । वह अगर ठंडा हो जाए तो हमें पता भी नहीं चलेगा कि वह ठंडा हो गया क्योंकि उसी के साथ हम सब ठंडे . हो जाएंगे। दस करोड़ मोल जो सूरज है, वह भी हमारे प्राण के स्पन्दन को बांधे हुए है, वह भी हमारे घर का हिस्सा है। उसके बिना हम हो ही नहीं सकते । वह हमारे होने को भी संभाले हुए है। लेकिन कब हमने सूरज को घर का साथी समझा है ? कब हमने माना है कि सूरज भी अपना है मित्र और अपने परिवार का है ? लेकिन जिसे हमने कभी परिवार का नहीं समझा है उसके बिना हम कोई भी नहीं होंगे। न परिवार होगा न हम होंगे। वह दस करोड़ मील दूर बैठा हुआ सूरज भी हमारे हृदय की धड़कन का हिस्सा है। घर के भीतर है या बाहर अगर यह सवाल पूछा जाए तो क्या उत्तर होंगे?
सूरज घर के भीतर है या घर के बाहर ? अगर सूरज को घर के बाहर करते हैं तो हम जीवित नहीं रहते। सूरज अगर हमारे घर के भीतर हो तो ही हम जीवित हैं। हवाएँ, जो सारी पृथ्वी को घेरे हुए हैं, हमारे घर के भीतर है, अगर एक क्षण को न हो जाएं तो हम उसी क्षण 'न' हो जाएंगे। सूरज तो पास है। दूर के चांद तारे भी, दूर के यह ग्रह उपग्रह भी, दूर के सूरज और महासूरज भी वे सब भी किसी न किसी अर्थ में हमारे जीवन का हिस्सा है।
पत्नी ने आपका खाना बना दिया है. तो वह आपके घर के भीतर है। लेकिन एक गाय ने घास घरी है और आपके लिए दूध बना दिया है तो वह आपके घर के भीतर नहीं है। और घास को सीधा बाप पर कर दूष नहीं बना