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________________ मालोतरप्रवचन-२१ को बातें हैं। महावीर यह देख सकते हैं कि इस व्यक्ति की उम्र समाप्त हो गई है। यह सिर्फ निमित्त है इसके मरने का, इसलिए चुप भी रह सकते हैं । और कोई कारण भी न हो, सिर्फ इतना ही दिखता हो कि इस आदमी की उम्र तो समाप्त हो गई है और यह सिर्फ निमित्त है इसके मरने का और कोई निमित्त सुन्दर है तो इसे मर जाने दें। और एक व्यक्ति की उम्र समाप्त नहीं हुई है, और व्यर्थ उलझाव में पड़ा है, व्यर्थ उपद्रप में पड़ा है, सोच सकते हैं रोक लें तो वह उसे रोक लेते हैं। किन्हीं क्षणों में मरना भी हितकर है लेकिन उतने क्षण को अनुभूति और उतनी गहराई हमें ख्याल में नहीं आ सकती है। अगर मैं किसी को प्रेम करता हूँ तो कोई ऐसा भी क्षण हो सकता है जब मैं चाहूँ कि वह मर हो जाए। हालांकि यह कैसी अजीब बात है क्योंकि जिसको हम प्रेम करते है, उसे हम कभी भी मरने नहीं देना चाहते। चाहे जीना उसके मरने से ज्यादा दुःखदाई हो जाए तो भी हम उसे जिन्दा रखना चाहते हैं किसी भी हालत में । एक बूढ़ा बाप है, नब्बे साल का हो गया है, बीमार है, दुःखी है, आंख नहीं है, उठ नहीं सकता, बैठ नहीं सकता। फिर भी बेटे, बहू, बेटियां, प्रेम में उसको जिन्दा रखे चले जा रहे हैं, चेष्टा कर रहे हैं उसको जिन्दा रखने की। अब पता नहीं यह प्रेम है या बहुत गहरे में सताने की इच्छा है। कहना बहुत मुश्किल है। अगर सब में यह प्रेम है तो बड़ा अजीब प्रेम मालूम पड़ता है कि मेरे सुख के लिए आप जिन्दा रहें। मैं आपको दुःख में भी जिन्दा रखना चाहूँ तो यह प्रेम नहीं है । मैं दुःखी होना पसंद करूंगा। आप मर जाएंगे, मुझे दुःख होगा, पीड़ा होगी। एक खाली घाव रह जाएगा। वह कभी नहीं भरेगा । वह मैं पसन्द करूंगा । लेकिन यह पीड़ा और दुःख आपका नहीं सहूँगा। मगर ऐसे प्रेम का शायद पाना बहुत कठिन होगा कि कोई बेटा अपने बाप को जहर दे दे और कहे कि अब नहीं जीना है आपको क्योंकि मेरा प्रेम नहीं कहता है कि आपको जीना है । मुझे दुःख होगा आपके मरने का । वह दुःख मैं सहूँगा । लेकिन आप-मुझे दुःख न हो इसलिए जिएं यह तो ठीक नहीं । ऐसे क्षण हो सकते हैं मगर ऐसे बेटे का प्रेम समझ में आना बहुत मुश्किल है। लेकिन कभी वह वक्त आएगा दुनिया में जब बेटे इतना प्रेम भी करेंगे, पलियां इतना प्रेम भी करेंगी, पति इतना प्रेम भी करेंगे। प्रेम का मतलब ही यह है कि हम दूसरे को दुःख में न डाल सकें, उसे हम सुख में ले जा सकें।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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