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________________ ६०५ महावीर : मेरी दृष्टि में जाएंगे। मैंने कहा : मुश्किल में आप नहीं पड़ेंगे। वह युवक दूसरे दिन सुबह मेरे पास आया। उसने कहा कि चार साल बाद मैं पहली बार सो पाया। क्योंकि जब मैंने कहा कि ऐसा है और ऐसा हो सकता है तो अब क्या सवाल है । अब ठीक है। बात खत्म हो गई। अगर मौत है और उसकी स्वीकृति है तो संघर्ष कहाँ है ? मौत है और स्वीकृति नहीं, तो हम मौत नहीं है ऐसे भाव पैदा करते हैं। और इस तरह की व्यवस्था करते हैं कि पता ही न चले कि मौत है। मरघट गांव के बाहर बनाते हैं कि पता ही न चले कि मौत जिन्दगी का कोई हिस्सा है। गांव में किसी को पता ही नहीं चलता कि कोई मरता है। मरघट होना चाहिए ठीक गांव के बीच में जहां से दिन में दस बार निकलना पड़े और दस बार खबर आए कि मौत खड़ी है। उसको बनाते हैं गांव के बाहर ताकि किसी को पता ही न चले कि मौत है । अपर कोई मर जाए तो उनको भेज आते हैं लेकिन जिन्दा आदमी को बचाते हैं। कोई मर जाए, रास्ते से अर्थी निकल रही हो तो बच्चे को माँ भीतर घर में बुला लेती है, दरवाजा बन्द कर लेती है कि अर्थी निकल रही है बेटा, भीतर आ जाओ। जबकि मां को थोड़ी समझ हो तो बच्चों को बाहर ले आना चाहिए कि बेटा अर्थी निकल रही है, इसको ठीक से देखो और समझो कि कल मैं मरूंगी, परसों तुम मरोगे। यह जीवन का सत्य है। इससे भागने का, बचने का कोई उपाय नहीं है। ___ असुरक्षा के बोध का यह मतलब है कि उसके अन्दर पूरी चेतनता होनी चाहिए । वह अचेतन में दबा न रह जाए। चेतन हमें ख्याल में हो तो हमारी जिन्दगी बिल्कूल दूसरी हो । जो कुछ चल रहा है उसमें कुछ भी फर्क नहीं होगा लेकिन आप बिल्कुल बदल जाएंगे। आपकी पकड़ बदल जाएगी, आसक्ति बदल जाएगी, राग बदल जाएगा, द्वेष बदल जाएगा, आप दूसरे आदमी हो जाएंगे, क्योंकि क्या राग करना, क्या द्वेष करना? अगर जिन्दगी इतनी असुरक्षित है तो इस सब पागलपन का क्या अर्थ है ? क्यों ाि करनी ? क्यों आकांक्षा करनी ? क्यों महत्त्वाकांक्षा ? वह बोध आपकी इन सारी चीजों को मिटा देगा। मेरा सारा जोर इस बात.पर है कि अगर हम जीवन के तथ्य को देख लें तो हम सत्य की ओर अपने आप गति कर जाएंगे। हम क्या किये हैं कि तथ्य तक को मुठला दिया है और सब ओर से लीप पोतकर ऐसा कर दिया है कि
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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