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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१६
५६५ इस कविता को अगर कभी गणित और विज्ञान की कसौटी पर कसने चले गए तो तुम गल्ती में पड़ जाओगे । इसलिए मैं इन सारी बातों को रूपक कथाएँ कहता हूँ जिनके माध्यम से कुछ बात कही गई है जो कि शायद और माध्यम से कही नहीं जा सकतीं।
जीसस से किसी ने पूछा कि आप कहानियां क्यों कहते हैं, सीषा क्यों नहीं कह देते । तो जोसस ने कहा कि सीधी बात समझने वाले लोग अभी पैदा कहाँ हुए हैं ? तो कहानी कहनी पड़ती है। फिर जोसस ने कहा कि कहानी कहने में एक और फायदा है। जो नहीं समझ पाते उनका नुकसान नहीं होता क्योंकि सिर्फ एक कहानी उन्होंने सुनी है। लेकिन जो समझ पाते हैं वे कहानी में से निकाल लेते हैं जो निकालना पा । और कभी-कभी सीधे सत्य नुकसान भी पहुंचा सकते हैं ! अगर न समझ में आएं तो कठिनाई में डाल सकते हैं। क्योंकि उनको कहानी कह कर आप टाल नहीं सकते। तो वे आपकी जन्दगी पर भारी भी हो सकते हैं । कहानी है तो आप टाल भी देते हैं। लेकिन जो देख सकता है वह खोज लेता है। कहानियां सत्य को कहने का एक ढंग है कि सत्य रूखा भी न रह जाए, मृत भी न हो जाए, जीवन्त हो जाए । लेकिन अगर नासमझ आदमी के हाथ में कहानियां पड़ जाएं तो वह उनको सत्य बना लेता है । और सत्य बना कर सारे व्यक्तित्व को झूठ कर देता है। तो मैं उनको रूपक कथाएँ, बोष कथाएँ हो कहता हूँ। उनमें बड़ा बोध छिपा है लेकिन वे ऐतिहासिक तथ्य नहीं है।
प्रश्न : महावीर ने किसी दूसरे का सहारा लेने से इन्कार कर दिया। सही बात है । लेकिन साथ ही साथ प्रश्न उठता है कि सहारा न लेना जितना महत्वपूर्ण है सहारा न देना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण होना चाहिए। लेकिन उनकी अभिव्यक्ति और उसके बाद फिर पावक, और श्रमण यह सब है-यह दूसरे को सहारा देने वाली बातें हैं। तो इस पहलू पर क्यों नहीं विचार किया गया कि मैं जब सहारा नहीं लेता हूं तो मैं सहारा देने वाला भी कौन हूँ?
उत्तर : इसे भी समझना चाहिए। यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। और साधा. रणतः ऐसा ही दिखाई पड़ेगा कि अगर कोई व्यक्ति सहारा नहीं ले रहा है तो बिल्कुल ठीक बात यह है कि वह किसी को सहारा भी न दे। यह बिल्कुल तर्कयुक्त मालूम पड़ेगा लेकिन यह तर्क एकदम प्रान्त है भ्रांति कहाँ है यह समझ लेना चाहिए।