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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१८ ५७६ हो रहा था। गांव के बड़े-बूढ़े मोजूद थे। लेकिन मेरे मित्र ने कहा कि यह क्या पागलपन है । और इतना साज-संवार चल रहा था, इतने बैड-बाजे बज रहे थे, तो मेरे मित्र ने उस घर के बूढ़े को कहा कि यह क्या पागलपन है कि आप लोग इस गुड़िया के विवाह में सम्मिलित हुए। तो उन्हाने कहा कि. इस उम्र में पता चल जाना चाहिए कि सभी विवाह गुड़ियों के हैं। उस बूढ़े ने कहा कि इसमें भो क्या फर्क है। उसमें और इसमें कोई फर्क नहीं है । अभी बच्चे खेल खेल रहे है, हम उसमें सम्मिलित होते हैं और हम उतनो गम्भारता से हो सम्मिलित होते हैं जितनी गम्भीरता से हम असली विवाह में सम्मिालत होते हैं ताकि बच्चे समझ लें कि असली विवाह भी गुड़ियों के खेल से ज्यादा नहीं हैं। बूढ़े दाना में एक हो गम्भीरता से सम्मिलित हाते हैं । ___ उस बूढ़े का ख्याल देखिए। वह कह रहा है कि बच्चों को अगो से पता चल जाए कि हमारी गम्भीरता में कोई फक नहीं है ! गुड़िया के विवाह में भी हम उसी गम्भीरता से आते हैं जैसे हम अमला विवाह मे आते हैं। दानों में कोई फर्क नहीं है। दोनों में हम कोई भेद भी नहीं करते हैं । ठाक है । वह एक तल की गुड़ियों का विवाह है, वह दूसरे तल को गुड़ियों का विवाह है । लेकिन विवाह हो रहा है। लोग मजा ले रहे है और हम भागीदार हो जाते हम क्यों नाहक लोगों के इस रस में, इस राग-रंग में बाधा बन जाएँ। जहाँ बुद्धिमत्ता आती है वहाँ जगत् माया से अलग नहीं हो जात', यहाँ जगत् नाटक से अलग नहीं हो जाता। बह नाटक और जगत् एक ही हैं। काई निन्दा नहीं आ जाती कि नाटक गलत है। ऐसा कुछ भी नहीं हो पाता। वहीं सब बराबर है, जगत् और नाटक ए हो जात है। सिफ एक घटना ट जाता है किमाक्षी अलग खड़ा हो जाता है। जिस दिन साक्षा अग खड़ा हो जाए जीवन से, उसी दिन दौड़ के बाहर हो जाता है। तो महावार की साधा मौलिक रूप से साक्षी की सायना है। सभी साधनाएँ मौलिक रूप से साक्षा की साधनाएँ हैं कि हम किस भांति देवने वाले न रह जाएं, नाग। वाले न २१ जाएं, करने वाले न रह जाएँ, दर्शक, द्रष्टा, साक्षी हा जाएं, किस भांति सिर्फ साक्षी रह जाएं। एपोटेक्टस एक अद्भुत व्यक्ति हुआ है। बीमारी भी आतो, दुःख भी आता, चिन्ता भी आती तव भी लोग उसे वैसा ही पाते जैसा जब वह स्वस्थ था, निश्चिन्त था, शांत था, सुखी था। लोगों ने हर हालत में उसे देखा लेकिन वैसा ही पाया जैसा वह था। उसमें कोई फर्क नहीं देखा कभी भी। कुछ लोग उसके
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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