________________
प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१८
५७३
रहेंगे । आवागमन से छटने की जो कामना है, यह उन लोगों को उठी है जिन्हें इस घूमते हुए चक्र की व्यर्थता दिखाई पड़ गई कि जन्मों-जन्मों से एक-सा घूमना हो रहा है; हम घूमते चले जा रहे हैं और इससे छलांग लगाने का ख्याल नहीं आता। छलांग लग सकती है, छलांग यह घटना है जिसके लिए फिर वे नियम लागू नहीं होते। जैसे आप छत पर खड़े हैं। दस आदमी छत पर खड़े हैं। कोई भी छत से नहीं गिर रहा है। एक आदमी छत पर छलांग लगाता है । यह आदमी छत से बाहर हो गया। छत इसे जमीन की कशिश से बचा रही थी। अब जमीन इसे खींचेगी अपनी तरफ जो कि छत पर खड़े हुए किन्हीं लोगों को नहीं खीच सकती है। अभी जो हमने चांद पर आदमी भेजा इसके लिए सबसे भारी कठिनाई एक ही है। और वह यह कि जमीन की कशिश से कैसे छूटें। दो सौ मील तक जमीन के ऊपर चारों तरफ जमोन की कशिश का प्रभाव है। इसके बाद एक इंच बाहर हो गए कि जमीन का खींचना खत्म हो गया । तो जो सैकड़ों वर्षों से चिन्तना चलती थी कि चांद पर कैसे पहुँचे, उसमें सबसे बड़ी कठिनाई यह थी कि जमीन से कैसे छूटें ? क्योंकि जमोन का गुरुत्वाकर्षण इतनी जोर से खींचता है कि उसके बाहर कैसे हो जाएं ? यह पहले सम्भव नहीं हो सकता था, अब सम्भव हो गया है। क्योंकि हम इतना बड़ा विस्फोट पैदा कर सके रोकेट के पीछे कि उस विस्फोट के धक्के में यह रोकेट गुरुत्वाकर्षण के घेरे के बाहर हो गया। एक बार बाहर हो गया पृथ्वी को जकड़ के कि अब वह कहीं भी जा सकता है । अब कोई सवाल नहीं है कहीं जाने का। दूसरा डर चाँद पर उतारने का था कि पता नहीं कितनी दूरो से चांद खींचेगा या नहीं खींचेगा। तो हर एक कशिश का क्षेत्र है एक, हर नियम का एक क्षेत्र है । और उस नियम के बाहर उठने का उपाय है । अपवाद के रूप में बाहर जा सकते हैं उस क्षेत्र के।
जीवन की जो गहरी परिधि है उसके केन्द्र में पृथ्वी को कशिश है, एसे जीवन के चक्र का केन्द्र वासना है। अगर जीवन के बाहर छिटकना है तो किसी न किसी रूप में वासना के बाहर निकलना होगा। प्रत्येक व्यक्ति के भीतर जो तृष्णा है, जिसको बुद्ध तृष्णा कहते हैं, वह जो वामना है, जो हमें स्थिर नहीं होने देती और कहती है, वह लाओ, वह पाओ, वह बन जाओ, हमें चक्कर में दौड़ाती रहती है। वह इशारे करती है चक्र के भीतर और कहती है कि धन कमाओ, यश कमाओ, स्वास्थ्य लाओ। वह कहती है और जियो, ज्यादा जियो, ज्यादा उम्र बनाओ। वह जो भी कहती है, वह सब उस चक्र के भीतर के