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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१८ ५६६ हो मोक्ष में बिदा ले लेते हों। शायद उनके योग्य पृथ्वी पर समय न बन पाता हो। बहुत बार ऐसा भी हुआ है कि कुछ शिक्षक प्रतीक्षा करते हुए बिदा हो गए हैं क्योंकि वह बन नहीं पाई बात । और इसलिए इस तरह की चेष्टाएं चलती है कि शिक्षक के जन्म लेने के पहले कुछ और व्यक्ति जन्म लेते हैं, जो हवा और वातावरण तैयार करते हैं। जैसा जीसस के पहले एक व्यक्ति पैदा हुआ-सन्त जोन । उसने सारे यहदी मुल्कों में जेरूसलम में, इजरायल में, सव ओर खबर पहुँचाई कि कोई आ रहा है, तैयार हो जाओ। उसने हजारों लोगों को दीक्षित किया कि कोई आ रहा है, तैयार हो जाओ। लोग पूछते कि कौन आ रहा है तो वह कहता कि प्रतीक्षा करो, क्योंकि तुम उसे देखकर ही समझ सकोगे, मैं कुछ बता नहीं सकता। लेकिन कोई आ रहा है। उसकी उसने तैयारी की। उसने पूरी अपनी जिन्दगी गांव-गांव घूमकर जीसस के लिए हवा तैयार की। और जब जीसस आ गए तो जोन ने जीसस को आशीर्वाद दिया और इसके बाद वह चुपचाप विदा हो गया। फिर उसका कोई पता नहीं चला। फिर जोन कहाँ गए ? वह जो हवा उसने बनाई थी, जीसस ने उसका पूरा उपयोग किया। बहुत बार ऐसा भी हुआ है कि जब कोई शिक्षक वापस लौटे तो वह कुछ प्राथमिक शिक्षकों को भेजे जो हवा पैदा कर दें। थियोसॉफी ने अभी एक बहुत बड़ी मेहनत की थी लेकिन वह असफल हो गई। जैसा कि मैंने कहा था कि बुद्ध के एक जन्म को सम्भावना है । थियोसाफिस्टों ने मैत्रेय को लाने के लिए भारी प्रयास किया। यह प्रयास अपने किस्म का अनूठा था। इस प्रयास में बड़ी साधना चली। इसमें कुछ लोगों ने प्राणों को संकट में डालकर आमंत्रण भेजा और कृष्णमूर्ति को तैयार किया कि मैत्रेय की आत्मा उसमें प्रविष्ट हो जाए। और कोई बीस-पच्चीस वर्ष कृष्णमूर्ति को तैयारी में लगे । कृष्णमूति को जैसी तैयारी हुई, दुनिया में वैसी किसी मादमी की शायद ही हुई हो। अत्यन्त गूढ साधनाओं से कृष्णमूर्ति को गुजारा गया। ठीक वक्त पर तैयारियां पूरी हुई । सारी दुनिया में कोई छः हजार लोग एक स्थान पर एकत्र हुए जहाँ कृष्णमूर्ति में मैत्रेय की आत्मा के प्रविष्ट होने की घटना घटने वाली थी। लेकिन शायद मूल-चूक हो गई। वह घटना नहीं घटी। और कृष्णमूर्ति अत्यन्त ईमानदार आदमी हैं। अगर कोई बेईमान आदमी उसकी जगह होता तो वह शायद अभिनय करने लगता कि घटना घट गई है। कृष्णमूर्ति ने इन्कार कर दिया गुरु होने से।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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