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प्रश्नोत्तर - प्रवचन- १८
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सिवाय ईश्वर के यह कौन हो सकता है ? और मुक्त व्यक्ति करीब-करीब ईश्वर हो गया है ।
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तो हिन्दुओं ने उसे अवतरण कहा है, यानी ऊपर से उतरना जहाँ हम जाना चाहते हैं । स्वभावतः जिन्होंने भी अवतरण की यह धारणा बनाई, उन्हें वह ख्याल नहीं है कि यह व्यक्ति भी यात्रा करके ऊपर गया होगा तो ही यह वापस लोटा है । इस आधे हिस्से पर उनकी दृष्टि नहीं है । इसलिए हिन्दुओं ने अवतरण कहा है । जैनों ने अवतरण की बात ही नहीं कही; उन्होंने तीर्थंकर कहा है । तीर्थंकर का मतलब है शिक्षक, गुरु । तीर्थंकर का अर्थ है जिसके मार्ग पर चलकर कोई पार जा सकता है, जिसके इशारे को समझकर कोई पार उतर सकता है । लेकिन पार उतरने का इशारा वही दे सकता है जो पार तक हो आया हो। अगर मैं इस किनारे पर खड़ा होकर बता सकूँ कि वह रहा दूसरा किनारा तो अगर इसी किनारे से वह किनारा दिखता हो तो आपको भी दिखता होगा । तब मुझे बताने की जरूरत नहीं है । किनारा कुछ ऐसा है कि दिखता नहीं है । और जब भी कोई इशारा कर सकता है कि वह रहा किनारा तो एक अर्थ है उसका कि वह उस किनारे से होकर लौटा हुआ व्यक्ति है, नहीं तो उसकी ओर इशारा कैसे कर सकता है । अगर सबको दिखाई पड़ता होता तो हमको भी दिखाई पड़ जाता। हम सब को दिखाई नहीं पड़ता। सिर्फ उस व्यक्ति का इशारा दिखाई पड़ता है, व्यक्ति की आँखों को शांति दिखाई पड़ती है, उसके प्राणों के चारों ओर भरता हुआ आनन्द दिखाई पड़ता है, उसकी ज्योति दिखाई पड़ती है । किनारा नहीं दिखाई पड़ता लेकिन उसका इशारा दिखाई पड़ता है और वह आदमी आश्वासन देता हुआ दिखाई पड़ता है । उसका सारा व्यक्तित्व आश्वासन देता हुआ मालूम पड़ता है कि वह किसी दूसरे किनारे का अजनबी है, किसी और तल को छूकर लौटा है। कुछ उसने देखा है जो हम दिखाई नहीं पड़ रहा है। लेकिन वह व्यक्ति भी उस किनारे की ओर इशारा कैसे कर सकता है जहाँ यह हो न माया हो ?
तीर्थंकर का मतलब हो यह हुआ कि जो उस पार को छूकर लोट आया है इस पार खबर देने को । और मैं मानता हूँ कि उचित ही है कि जीवन में ऐसी व्यवस्था हो कि जो उस पार जा सके, कम से कम एक बार तो लौट कर खबर दे सके | अगर यह व्यवव्या न हो, अगर जीवन के अन्तर्नियम का यह हिस्सा न हो तो शायद हमें कभो भो खबर न मिले । आज कोई व्यक्ति चाँद से होकर लौट आया है तो चांद के सम्बन्ध में हमें बहुत सी खबर मिली है। चाँद यहाँ