SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 479
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६४ महावीर : मेरी दृष्टि में जीवन को वापिस उपलब्धि की सम्भावना है। यह सम्भावना वैसी ही है जैसा मैंने कहा कि कोई आदमी साइकिल चलाता हो, पैडल चलाता हो, फिर पैडल चलाना बन्द कर दे तो साइकिल उसी क्षण नहीं रुक जाती । एक प्रवाह है गति का कि पैडल रुक जाने पर भी साइकिल थोड़ी दूर बिना पैडल चलायो जा सकती है, लेकिन अन्तहीन नहीं जा सकती, बस थोड़ी दूर जा सकती है । यह जो थोड़ी देर का वक्त है, जब कि पैडल चलाना बन्द हो गया तब भी साइकिल चल जाती है, ठीक ऐसे हो वासना से मुक्ति हो जाए तो भी थोड़ी देर जीवन चल जाता है । वह अनन्त जीवन का मोमेंटम है पैडल चलाना बन्द कर देने के बाद, कोई चाहे तो थोड़ी देर, साइकिल पर सवार रह सकता है, कोई चाहे तो ब्रेक लगाकर नीचे उतर सकता है। सवार रहना पड़ेगा, ऐसी भी कोई अनिवार्यता नहीं है। पैडल चलाना बन्द हो गया है तो व्यक्ति उतर सकता है। लेकिन न उतरना चाहे तो थोड़ी देर चल सकता है, बहुत देर नहीं चल सकता। जैसा मैंने कहा कि जीवन को व्यवस्था में एक जीवन समस्त वासना के क्षीण हो जाने पर भी चल सकता है । मगर यह जरूरी नहीं है। कोई व्यक्ति सीधा मोक्ष में प्रवेश करना चाहे तो कर जाए लेकिन मुक्त व्यक्ति चाहे तो एक जीवन के लिए वापस लौट आता है। ऐसे जो व्यक्ति लोटते हैं इन्हीं को मैं तीर्थकर, अवतार, पैगम्बर, ईश्वरपुत्र कह रहा हूँ यानी ऐसा व्यक्ति जो स्वयं मुक्त हो गया है और अब सिर्फ खबर देने, वह जो उसे फलिज हुआ है, घटित हुमा है उसे वांटने, उसे बताने चला आया है। हम भोगने माते है, वह बांटने आता है। इतना ही फर्क है । और जो स्वयं न पा गया हो, वह व तो बांट सकता है, न इशारा कर सकता है। एक जीवन के लिए कोई भी मुक्त व्यक्ति रुक सकता है लेकिन जरूरी नहीं है। सभी मुक्त व्यक्ति रुकते हैं, ऐसा भी नहीं है। लेकिन जो व्यक्ति रुक जाते हैं इस भाँति, वे हमें बिल्कुल ऐसे लगते हैं जैसे कि वे ईश्वर के भेजे गए दूत हों क्योंकि वे पृथ्वी पर हमारे बीच से नहीं आते । वे उस दशा से लौटते हैं, जहाँ से साधारणत: कोई भी नहीं लौटता है। इसलिए अलग-अलग धर्मों में अलगअलग धारणा शुरू हो गई । हिन्दू मानते हैं कि वह अवतरण है परमात्मा का, ईश्वर स्वयं उतर रहा है ! क्योंकि यह जो व्यक्ति है, इसे अब मनुष्य कहना किसी भी अर्थ में सार्थक नहीं मालूम पड़ता। क्योंकि न तो इसकी कोई वासना है, न इसकी कोई तृष्णा है, न इसकी कोई दौड़ है, न कोई महत्वाकांक्षा है । यह अपने लिए जोता भी नहीं मालूम पड़ता। अपने लिए श्वास भी नहीं लेता । तो
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy