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________________ प्रश्नोत्तर - प्रवचन- १७ ૫૪૦ प्रश्न : यह तो सबकी इच्छा है ही ? उत्तर : यह सबकी इच्छा है कि आनन्द मिले। लेकिन में जैसा हूँ वैसा ही मिल जाए, मैं न बदलूं। लेकिन आनन्द वैसो हालत में नहीं मिलता और मैं बदलने को तैयारी में नहीं हूँ । बदलने की तैयारी दिखाऊँगा तो आनन्द मिल सकता है। यानी मैं कहता हूँ कि प्रकाश तो मिले लेकिन मुझे आँख न खोलनी पड़े। तो फिर मुश्किल है। सबको इच्छा है कि आनन्द मिले। हर आदमी आनन्द को ही कोशिश में लगा हुआ है और सिर्फ दुःख पा रहा है। हर आदमी आनन्द पाना चाहता है, शान्ति पाना चाहता है लेकिन जो कर रहा है शान्ति पाने के लिए, आनन्द पाने के लिए, उस सबसे दु:ख पाता है, अशान्ति पाता है । लेकिन वह करने को नहीं बदलना चाहता है । अब जैसे एक आदमो महत्वाकांक्षी है और कहता है कि मुझे आनन्द चाहिए । लेकिन महत्वाकांक्षा चित्त कभी भी आनन्दित नहीं हो सकता क्योंकि जा भो मिल जाएगा उससे वह सन्तुष्ट नहीं होगा ओर जो नहीं मिलेगा उसके लिए पाड़ित हो जाएगा । कितना हो कुछ मिल जाए उनको, उसका महत्वाकांक्षा चित आगे के लिए पाड़ा से भर जाएगा । वह कहता है कि मैं आनन्दित होना चाहता हूँ और वह यह भा कहता है कि मैं महत्वाकांक्षी सिर्फ इसलिए हूँ कि मुझे आनन्द चाहिए। अब महत्वाकांक्षा और आनन्द में विरोध है, यह देखने का वह राजो नहीं है । सिर्फ गैर महत्वाकांक्षी व्यक्ति आनन्द को उपलब्ध हो सकता है । लेकिन महत्वाकाक्षा चलाए रखना चाहते हैं हम और आनन्दित होना भा चाहते हैं । अत्र एक आदमी है जो कहता कि मैं प्रेम चाहता हूँ और प्रेम कमो देता नहीं । और यह ऐसी हालत है जैसे एक गाव में सभा भिखमंगे हा; सभा एक दूसरे के सामने हाथ जोड़े खड़े हों ओर सभा मांगना चाहते हों, देना कोई भी न चाहता हो। उस गाँव को जो हालत हो जाए वैसा हम सबको हालत होगी ? प्रेम देना कोई भी नहीं चाहता, प्रेम मांगना चाहता है । और यह भी ध्यान रहे जो आदमो प्रेम देने की कला सोख जाता है, वह कभी माँगता नहीं । मिलना शुरू हो जाता है, उसके माँगने का सवाल हो नहीं रह जाता। माँगता सिर्फ वही है जो दे नहीं पाता । अब बुनियाद यह है कि हम सब प्रेम चाहते हैं । ठोक है, इसमें कुछ बुरा भी नहीं है । लेकिन प्रेम सिर्फ उन्हें मिलता है जो चाहते नहीं और देते हैं । वह सूत्र है पाने का । और वह सूत्र हमारी समझ में नहीं आता इसलिए भूल हो जाती है, भटकन हो जाती है ।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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