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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१७ १४५ निरन्तर कथा यही है। अंधकार घना है, अज्ञान गहरा है। ज्ञान की पहली किरण उतरे, प्रकाश उतरे तो पहला काम हमारा यह होता है कि हमारी अखि एकदम बन्द हो जाती है क्योंकि अंधेरे में जाने वाला व्यक्ति प्रकाश को देखने की क्षमता भी नहीं जुटा पाता। लेकिन आँख कितनी देर तक बन्द रहेगी, वह तो खोलनी ही पड़ेगी और प्रकाश अगर सचमुच प्रकाश था तो पहचाना भी जा सकेगा। कभी हजार वर्ष लगेंगे, कभी दो हजार वर्ष । मेरी अपनी समझ यह है कि महावीर, बुद्ध, क्राइस्ट या कृष्ण को जो दिखाई पड़ा वह आज भी स्वीकृत हो सका है ? सत्य अभी भी प्रतीक्षा कर रहा है कि वक्त आएगा। सत्य को अनन्त प्रतीक्षा करनी पड़ती है क्योंकि हमारा असत्य बड़ा गहरा है। एक पुरानी कहानी है कि असत्य के पास अपने कोई पैर नहीं होते। अगर उसे चलना भी है तो सत्य के पैर ही उधार लेने होते हैं। अपने पैर उसके पास नहीं है। यानी असत्य अपने पैर पर खड़ा ही नहीं हो सकता। आप सब की स्वीकृति मिल जाए तो वह खड़ा हो सकता है, सत्य जैसा भासने लगता है । और सत्य को अस्वीकृति मिल जाए तो भी वह असत्य नहीं हो जाता, असत्य जैसा भासने लगता है। लेकिन सत्य सत्य है, असत्य असत्य है। असत्य करोड़ों वर्षों तक चले तो भी असत्य है। सत्य वित्कुल न चल पाए तो भी सत्य है। गैलीलियों ने जब यह कहा कि सूरज पृथ्वी का चक्कर नहीं लगाता है, पृथ्वी सूरज का चक्कर लगाती है तो ईसाई जगत् में क्रोध पैदा हुआ क्योंकि बाइबल कहती है कि पृथ्वी स्थिर है, सूरज चक्कर लगाता है। तो क्या जीसस को पता नहीं था? क्या हमारे पैगम्बरों को पता नहीं था? सत्तर साल के बूढ़े गैलीलियो को जंजीरें डाल कर पोप की अदालत में लाया गया और उससे कहा गया कि तुम कहो कि जो तुमने कहा है वह असत्य है । कहो कि पृथ्वी स्थिर है, मूरज चक्कर लगाना है। गैलीलियों ने कहा जैसी आपकी मर्जी । उसने कागज पर लिखा दिया कि आप कहते हैं तो मैं लिखे देता है कि सूरज ही चक्कर लगाता है पृथ्वी का, पृथ्वी चक्कर नहीं लगाती । लेकिन मैं कुछ भी लिखू इससे फर्क नहीं पड़ता, चक्कर तो पृथ्वी हो लगाती है। मैं क्या कर सकता हूँ? यानी में चक्कर लगाना थोड़े ही रोक सकता हूँ। ,गैलीलियो भी इन्कार कर दे तो क्या फर्क पड़ता है ? गैलीलियो थोड़े हो चक्कर लगवा रहा है। लेकिन बाइबल हार गई, गैलीलियो जीत गया। क्योंकि सत्य जीतता है । न गइबल
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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