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________________ प्रश्नोतर-प्रवचन-१७ ५४३ अपमानित कर रहे हैं, पुरुष को सम्मानित कर रहे हैं । मामला बिल्कुल ही उल्टा है । पुरुष पूरी तरह अपमानित हुआ है इस घटना में और स्त्री पूरी तरह सम्मानित हुई है। प्रश्न : ऐसी व्याख्या किसी और ने भी की है क्या? ' उत्तर : नहीं, अब तक तो मुझे ख्याल में नहीं है कि किसी ने की है। प्रश्न : अभी तक उन्होंने कसी व्याख्या को है इसको ? उत्तर : अभी तक की व्याख्या यही है कि स्त्री नीच योनि है। पुरुष ऊंची योनि है, इसलिए पुरुषयोनि को वह नमस्कार करे । लेकिन मैं इस व्याख्या को बिल्कुल ही गलत मानता हूँ। प्रश्न : महावीर के जमाने में बहुत से लोग साधु और साध्वियों हो गए। ध्यान में तो पीछे गये होंगे। लेकिन पहले घर-बार छोड़कर उनके साथ क्यों हो गए ? आप तो ऐसी सलाह देते नहीं हैं ? उत्तर : महावीर ने मनुष्य के चार वर्गीकरण किए हैं-श्रावक, श्राविका, साधु, साध्वी । महावीर की साधना-पद्धति श्रावक से शुरू होती है या श्राविका से । एकदम से कोई साधु नहीं हो सकता। महावीर की साधना का पूरा व्यवस्थाक्रम है । पहले उसे श्रावक होना होगा। साधना, ध्यान और सामायिक श्रावक की है। जब वह उससे गुजर जाए, जब उसको उतनी उपलब्धि हो जाए फिर वह साधु के जीवन में प्रवेश कर सकता है। महावीर सोधे उत्सुक नहीं हैं किसी को भी साधु की दीक्षा देने को। श्रावक वह भूमिका है जहाँ साधु का जन्म हो जाए तो फिर वह जा सकता है। और तब भी उनका आग्रह नहीं है कि वह जाए ही। वह श्रावक रहकर भी मोक्ष पा सकता है। सिर्फ महावीर ने ही यह कहने की हिम्मत की है। साधु होना अनिवार्य नहीं है बीच में । मान लीजिए कि आप गहरे ध्यान में गए और आप को वस्त्र पहनना ठीक मालूम पड़ता है तो आप जारी रखे। और कहीं आपको ऐसा भीतर लगने लगे कि छोड़ दें, कोई अर्थ नहीं है इनमें तो इसको भी क्यों रोके, छोड़ दें। यानी महावीर की आस्था है कि एक सहज भाव में अगर एक व्यक्ति को लगता है कि वह शान्त हुआ, ध्यानस्थ हुआ, घर में रहकर ही तो ठीक है। अगर उसे लगता है कि यह व्यर्थ हो गया, वह इसे छोड़ दे । रुकावट नहीं है उनकी कोई, कोई बाग्रह नहीं है।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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