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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१७ ५३९ मल्लीबाई को मल्लीनाथ कहा है, ऐसा रवीन्द्रनाथ को रवीन्द्र बाई कहने लगे। वह जो चित्त है भीतर गहरे में, वह एकदम स्त्री का है। शायद सभी कवियों के पास स्त्रैण चित्त होता है। असल में शायद काव्य का जन्म ही नहीं हो सकता पुरुष चित से। वह जो काव्य का जगत् है, वह स्त्रोचित्त का जन्म है। इसलिए दुनिया में जितना विज्ञान बढ़ता जा रहा है, काव्य पीछे हटता जा रहा है। विज्ञान पुरुष चित्त की देन है और पुरुष जीतता चला जाएगा तो काव्य पीछे हटता चला जाएगा । स्त्री का पूरा चित्त काव्य का है, स्वप्न का है, कल्पना का है। वह निष्क्रिय है, कुछ कर नहीं सकता, सिर्फ कल्पना कर सकता है। असल में कवि का मतलब है निष्क्रिय चित्त । वह कल्पना कर सकता है, और कुछ भी नहीं कर सकता। वह कई महल बना सकता है लेकिन कल्पना में। जो बैठेबैठे बन सकते हैं, वही महल बना सकता है। खड़े होकर और गिट्टी तोड़ कर और पत्थर जमा कर जो महल बनाने पड़ते हैं, वह उसके वश की बात नहीं है । वह बैठकर शब्दों के महल बना सकता है । रवीन्द्र कहते हैं कि मैंने क्या गाया ? जब मैं नहीं होता हूं तब परमात्मा ही उतर आता है और मुझसे गाता है। अब यह जो निष्क्रिय चित्त है इसमें कुछ उतरता है, इससे बहता है। यह प्रतीक्षारत है, राह देखता है, अवसर खोजता है लेकिन अपनी जगह चुप और मौन है । तो सभी कविचित स्त्रीचित्त होंगे। महावीर का यह जो जोर है, इसके पीछे कारण है। यह स्त्री और पुरुष के बीच नोचे-ऊँचे की बात नहीं है। यह स्त्रण चित्त और पुरुषचित्त क्या कर सकते हैं, इस बात के सम्बन्ध में विचार है । इसलिए महावीर कहते हैं स्त्री का मोक्ष नहीं है । इसका मतलब है स्त्रण चित्त को मोक्ष नहीं है । स्त्री मोक्ष जा सकती है लेकिन चित्त पुरुष का होना चाहिए—महावीर के मार्ग से । अगर मीरा के मार्ग से कोई जाना चाहे तो मीरा कहेगी पुरुष को कोई मोक्ष नहीं है । मीरा के मार्ग से जाना हो तो स्त्रीचित्त हो चाहिए । उस मार्ग से : पुरुष के लिए कोई मुक्ति नहीं है क्योंकि पुरुष इस तरह की बातें नहीं सोच सकता जैसा मोरा सोच सकती है। और अगर कभी पुरुष सोचता तो वह स्त्रण हो जाता। जब कबीर या सूर कृष्ण के प्रेम में पागल हो जाते हैं तो सोचते क्या है ? फौरन स्त्रण चित्त की बातें शुरू हो जाती हैं। कबीर कहते हैं “मैं तो राम की दुलहनियाँ"-मैं राम की दुलहन हूँ। वे कहेंगे कि मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ सेज पर तुम्हारी, तुम कब आओगे? स्त्रो का भाव शुरू हो जाएगा । जगत् में दो
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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