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________________ ५३८ महावीर : मेरी दृष्टि में बेमानी है। क्योंकि वह ठोक पुरुष जैसी बेसहारा खड़े होने की हिम्मत रख सकी। उसने कोई सहारा नहीं मांगा। इसलिए स्त्री कैसी ? मल्लीबाई कहा ही नहीं दिगम्बरों ने । उन्होंने कहा : मल्लीनाथ । पीछे झगड़ा खड़ा हो गया कि मल्लीबाई स्त्री थी कि पुरुष । दिगम्बर कहते हैं : पुरुष, श्वेताम्बर कहते हैं : 'स्त्रो' दोनों ठीक कहते हैं । मल्लीबाई स्त्री थी। लेकिन उसके चित्त की दशा स्त्रण नहीं है। यहां काश्मीर में एक स्त्री हुई : लल्ला। काश्मीर के लोग कहते हैं कि हम दो हो नाम पहचानते हैं : अल्ला और लल्ला। मगर लल्ला को स्त्री कहना मुश्किल है । इतिहास में वह अकेली ही स्त्री है जो नग्न रही। महावीर नग्न रहे वह ठीक है। पुरुष नग्न रह सकता है क्योंकि वह दूसरे को फिक्र ही नहीं करता। स्त्री चौबीस घंटे दूसरे की फिक्र में है। चाहे वह पति हो, चाहे प्रेमी हो, चाहे समाज हो । महावीर नग्न खड़े हो गए, यह कोई बड़ी बात न थी। लेकिन लल्ला नग्न खड़ी हो गई, यह बड़ी भारी बात है। उसके पास पुरुषचित्त है । वह जीवन भर नग्न रही । गांधी जी ठहरे हुए थे रवीन्द्रनाथ के पास, शांतिनिकेतन में । सांझ दोनों घूमने जाने वाले थे । तो रवीन्द्रनाथ ने कहा रुकें दो मिनट, मैं जरा बाल संवार आऊँ । वह भीतर गए। एक तो गान्धी जी को यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ कि बुढ़ापे में, बाल संवारने की इतनी चिन्ता क्यों। पर रवीन्द्रनाथ थे। और कोई होता तो शायद गान्धी जी उसको वहीं कुछ कहते भी। एकदम से कुछ कहा भी नहीं जा सका। रवीन्द्रनाथ भोतर चले गए। दो मिनट क्या, दस मिनट बीत गए । गान्धी खिड़की से झांक रहे हैं। रवीन्द्र आइने के सामने खड़े हैं और बाल संवारे चले जा रहे हैं। वह खो ही गए हैं आइने में। पन्द्रह मिनट बीत गये तब बरदाश्त के बाहर हो गया। गान्धी जी भीतर गए और कहा कि क्या कर रहे हैं आप । रवीन्द्र ने चौंक कर देखा और कहा अरे ! मैं भूल गया । चलता हूँ। चलने लगे हैं तो रास्ते में गान्धी जी ने उनसे कहा कि मुझे बड़ी हैरानी होती है कि इस उम्र में आप बाल संवारते हैं । रवीन्द्र ने कहा कि जब जवान था तो बिना संवारे भी चल जाता था। जब से यूँढ़ा हुआ हूँ तब से बहुत संवारना पड़ता है। बड़ी चिन्ता मन में लगती है कि किसी को देखकर कैसा लगूंगा। और मुझे तो ऐसा भी लगता है कि अगर मैं कुरूप है तो यह हिंसा है क्योंकि दूसरे की आँख को दुःख होता है तो मुझे सुन्दर होना चाहिए। मैं जितना हो सके सुन्दर बनने की कोशिश करता हूँ। रवीन्द्रनाथ पुरुष हैं मगर उनके पास एक स्त्रण चित्त है। अगर कोई हिम्मत करे तो जैसा.
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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