________________
प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१६
से भर रखो होती है। जैसे खालो कमरा है । खाली कमरे में आवाज गूंजती है और बहुत फर्नीचर भरा हो तो फिर नहीं गूंजता । हम फर्नीचर भरे लोग हैं जिनमें बहुत भरा हुआ है, फोटो-प्लेट ने बहुत इकट्ठा कर लिया है, आवाज गूंजती हो नहीं, कई दफा तो सुनाई हो नहीं पड़ता कि क्या सुना, क्या देखा, कुछ पता ही नहीं चलता। लेकिन महावीर जैसे व्यक्ति को संवदनशालता बड़ी प्रगाढ़ है। सब गूंजता है। जरा सी आवाज होता है, सूई भो गिरता है तो गूंज जाती है। लेकिन बस गूंजतो है । ओर जितनो देर गूंज सकता है, गूंजता है और बिदा हो जाती है। महावोर उसके प्रति काई प्रतिक्रिया नहीं करते-न क्षमा को, न काध को । महावीर का सारा योग अप्रतिक्रियायोग है। प्रतिक्रिया मत करो, देखो, जानो, सुनो लेकिन प्रतिक्रिया मत करा ।
प्रश्न : एक मन्दबुद्धि व्यक्ति भी तो प्रतिक्रिया नहीं करता ?
उतर । हाँ, वह इसलिए नहीं करता क्योंकि न वह सुनता है, न वह जानता है, न वह देखता है।
प्रश्न । मन्दबुद्धि भी एक आदमी है ?
उत्तर : हां, वह इसीलिए प्रतिक्रिया नहीं करता क्योंकि वह देख नहीं पाता, सुन नहीं पाता, समझ नहीं पाता । ओर वह मंदबुद्धि, प्रतिक्रिया नहीं करता। परम स्थिति में भी अक्सर जड़ जैसो अवस्था मालूम होने लगती है।
प्रश्न : तो मालूम कैसे पड़े ?
उत्तर : मालूम करने की जरूरत नहीं है। हां ! तुम अपनी फिक्र करो कि हम कहां हैं । परम स्थिति को उपलब्ध व्यक्ति हमें जड़ जैसा मालूम पड़ेगा। क्योंकि हमने जड़ को ही जाना है। अगर आप एक जड़ को गाली दे तो हो सकता है कि वह बैठा हुआ सुनता रहे। इसलिए नहीं कि उसने गालो सुनी बल्कि सिर्फ इसलिए कि सुना हो नहीं उसने कि क्या हुमा। महावोर को गाली दो तो हो सकता है वह भो वैसे बैठे सुनते रहें, इसलिए नहीं कि उन्होंने गाली नहीं सुनी। गाली पूरी सुनी, जैसी किसी आदमी ने कभी न मुनी होगी। लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं की क्योंकि गालो की प्रतिक्रिया क्या होती ? प्रतिक्रिया का फल क्या है ? प्रतिक्रिया से लाभ क्या है, प्रयोजन क्या है ?
अक्सर ऐसा होता है कि परम स्थिति को उपलब्ध व्यक्ति ठीक जड़ जैसा मालूम पड़े क्योंकि हम बड़ को हो पहचानते हैं । लेकिन फर्क तो बहुत गहरे