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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१५ ४६५ जिनको हम पालतू पशु कहते हैं वे कहीं, किसी तल पर हमसे मेल खाते हैं। लेकिन फिर भी उसी जाति के सभी पशु एक तल पर नहीं होते। कुछ आगे बढ़े होते हैं, कुछ पीछे हटे होते हैं। प्रश्न : जो लोग शाकाहारी नहीं होते हैं उनमें करुणा की भावना, मनुष्यता की भावना अधिक होती है सा कि पश्चिमी देशों में। लेकिन हम हिन्दुस्तान में आम तौर से शाकाहारी हैं तो भी हम में करुणा की भावना, मनुष्यता की भावना रह ही नहीं गई । यह कैसे ? उत्तर : हां, उसके कारण है क्योंकि अगर आप करुणा के कारण शाकाहारी हुए हैं तब तो बात अलग है और अगर जन्म के कारण शाकाहारी हैं तो इससे कोई सम्बन्ध ही नहीं है करुणा का। यानी आप क्या खाते हैं, इससे करुणा का सम्बन्ध नहीं है । आपकी करुणा क्या है, इससे आप का सम्बन्ध हो सकता है । तो मुल्क में जो शाकाहारी है वह जबरदस्ती शाकाहारी हैं । उसके चित्त में शाकाहार नहीं है। उसके चित्त में कोई करुणा नहीं है । फिर जो मांसाहारी है उसके मन की कठोरता बहुत कुछ उसके भोजन, उसकी जीवनव्यवस्था मे निकल जाती है और वह मनुष्य के प्रति ज्यादा सह्य हो सकता है। और आप शाकाहारी हैं तो आपको वह भी मौका नहीं है। यानी मेरा कहना यह है कि एक शाकाहारी आदमी में आधा पाव कठोरता है और एक मांसाहारी आदमी में भी आधा पाव कठोरता है तो वह मांसाहारी आदमी ज्यादा करुणावान सिद्ध होगा बजाय शाकाहारी के क्योंकि वह जो आधा पाव कठोरता है उसकी वह और दिशाओं में बह जाती है। और आपकी आधा पाव कठोरता का कहीं बहने का उपाय नहीं है। वह सिर्फ आदमी की तरफ ही बहती है, वह सिर्फ आदमी को ही चूसती है । इसलिए पूरब के मूल्क मे जहां शाकाहार बहुत है वहाँ बड़ा शोषण है, बड़ी कठोरता है और आदमी के आपसी सम्बन्ध बहुत तनावपूर्ण है । और आदमी आदमी के प्रति इतना दुष्ट मालूम पड़ता है जिसका हिसाब लगाना मुश्किल है। और बाकी मामलों मे वह बड़ा हिसाब लगाता है कि कहीं चींटी पर पैर न पड़ जाये, पानी छान कर पीता है । वह जो कठोरता के बहने के इतर उपाय थे बंद हो हाते हैं। फिर एक ही उपाय रह जाता है। आदमी-आदमी का सम्बन्ध बिगड़ जाता है। ___ तो मैं शाकाहार का पक्षपाती हूँ, इसलिए नहीं कि आप शाकाहारी हो बल्कि इसलिए कि आप करुणावान् हों और आप उस चित्त-दशा में पहुंचे हुए हो जहाँ से जीवन के प्रति कठोरता क्षीण हो जाती है। जब कठोरता क्षीण
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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