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महावीर : मेरी दृष्टि में
किया है । उसके लिए भोजन इतना महत्त्वपूर्ण नहीं जितना भोजन का साधन महत्त्वपूर्ण है। एक बार वह भोजन से चूक सकता है, लेकिन मनुष्यता से नहीं चूक सकता।
मैंने एक कहानी पढ़ी है। हिन्दुस्तान-पाकिस्तान का बटवारा हुमा । एक गांव में उपद्रव हो गया, दंगा हो गया। एक परिवार भागा। पति है, साथ में पत्नी है, बच्चा है। दो बच्चे कहीं खो गए । गाएं थीं, भैंसें थीं वह सब खो गई । सिर्फ एक गाय बचा पाए । लेकिन उस गाय का बछड़ा था, वह भी खो गया । वे सब जंगल में छिपे हैं । दुश्मन आस-पास हैं, मशालें दिखाई पड़ रही हैं । बच्चा रोना शुरू करता है। मां घबड़ा जाती है। वह पहले उसका मुंह बंद करती है, उसे दबाती है, रोकती है। लेकिन वह जितना दबाती है वह उतना रोता है। फिर मां-बाप उसकी गर्दन दबाते हैं क्योंकि जान बचाने के लिए दूसरा कोई उपाय नहीं है । वह चिल्लाता है तो अभी दुश्मन आवाज सुन लेगा और मौत हो जाएगी। लेकिन तभी उस गाय के बछड़े की आवाश कहीं दूसरे दरख्तों के पास से सुनाई पड़ती है और वह गाय जोर-जोर से चिल्लाने लगती है। गाय को चिल्लाते सुनकर दुश्मन पास आ जाता है। बच्चे की गर्दन दबानी आसान थी, गाय की गर्दन भी नहीं दबती । गाय को मारो कैसे ! कोई उपाय भी नहीं है मारने का। तो वह औरत अपने पति से कहती है कि तुमसे कितना कहा कि इस हैवान को साथ मत ले चलो। लेकिन पति कहता है कि मैं यह विचार कर रहा है कि पशु कौन है ? हम या यह गाय ? हमने अपने बच्चे को मार डाला है अपने को बचाने के लिए तो हैवान कौन है ? मैं इप्स चिन्ता में पड़ गया हूँ। दुश्मनों को मशालें करीब आती चली जाती हैं । गाय भागती है क्योंकि उसी तरफ उसके बछड़े की आवाज आ रही है। वह दुश्मनों के बीच घुस जाती है। लोग उसे आग लगा देते हैं । वह जल जाती है लेकिन बछड़े के लिए चिल्लाती रहती है। तो वह पति कहता है कि मैं पूछता हूँ कि पशु कौन है, आज मेरे तरफ से पहली दफ़ा जिन्दगी में ख्याल उठा है कि किसको हम मनुष्य कहें, किसलो हम पशु कहें ? उपयोगी दृष्टि से शायद यह जरूरी है कि मनुष्य पशुओं को मारे, नहीं तो मनुष्य नहीं बच सकेगा। यह बात इस अर्थ में बिल्कुल ठीक है कि मनुष्य अगर शरीर के तल पर ही बचना चाहता तो शायद पशुओं को मारता ही रहता। लेकिन मनुष्य अगर मनुष्यता के आत्मिक तल पर' बचना चाहता हो तो पशुओं को मारकर कभी नहीं बच सकता।