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________________ ४५६ महावीर : मेरी दृष्टि में कहता है कि एक ही परमात्मा है लेकिन पैगम्बर अर्थात् सन्देश लाने वाले तो हजारों हैं । क्योंकि वह कहता है कि महावीर भी ठीक, बुद्ध भी ठीक, जीसस भी ठीक, यह सभी पैगम्बर है । एक ही खबर लाने वाले ये अनेक लोग है। मगर यह मुसलमान की बरदाश्त के बाहर है। अभी मेरा एक वक्तव्य छपा। उसमें मैंने महावीर के साथ मुहम्मद और ईसा का नाम लिया । तो एक बड़े जैन मुनि हैं, जिनके बड़े भक्त हैं, उनको वह किताब किसी ने न दी तो उन्होंने उसे उठाकर फेंक दिया और कहा कि महावीर का नाम मुहम्मद के साथ ! कहाँ मुहम्मद कहाँ महावीर ! महावीर सर्वज्ञ तीर्थकर और महम्मद साधारण अज्ञानी। कहाँ मेल बैठा दिया। दोनों का नाम साथ दिया, यही पाप हो गया। फिर उन्होंने कहा कि इसको मैं पढ़ ही नहीं सकता। तो वही मुहम्मद को मानने वाला भी कहेगा कि मुहम्मद का नाम महावीर के साथ लिख दिया। कहाँ पैगम्बर मुहम्मद और कहाँ महावीर ? क्या रखा है महावीर में । तो वह जो सूफी वहेगा कि सब पैगम्बर हैं उसी के, वह बरदाश्त के बाहर हो जाएगा। अज्ञानियों की भीड़ में ज्ञान सदा बरदाश्त के बाहर हो जाता है, इसलिए कठिनाई हो जाती है। सबकी चेतना समान है किन्तु अभिव्यक्ति बिल्कुल अलग-अलग हैं। मुहम्मद मुहम्मद हैं, महावीर महावीर हैं । अभिव्यक्ति अलग-अलग होगी । मुहम्मद जो बोलेंगे, वह मुहम्मद का बोलना है। अपनी भाषा होगी, अपनी परम्परा के शब्द होंगे। अभिव्यक्ति अलग-अलग होगी । अनुभूति बिल्कुल एक है। प्रश्न : सबकी एक-एक अभिव्यक्ति है तो उनके सुनने वाले समझ कर साधना में लग जाते हैं। फिर आपने सव अभिव्यक्तियों को अलग-अलग बात की है तो आपके सुनने वालों का क्या होगा? उत्तर : मेरे सुनने वालों को बड़ी कठिनाई है क्योंकि अगर मैं कोई एक ही बात कहता तब बहुत आसान था मेरे पीछे चलना। पहली बात कि मैं पीछे नहीं चलाना चाहता किसी को। जरूरत ही नहीं मेरे पीछे चलने की । दूसरी बात मैं चीजों को इतना आसान भी बनाना नहीं चाहता क्योंकि आसान बनाकर नुकसान हुआ है। सम्प्रदाय इसीलिए बने । मैं तो उन सारी धाराओं की बात करूंगा, उन सारे नियमों की बात करूंगा और उन सारी पद्धतियों को, उन सारे रास्तों की जो मनुष्य ने कभी भी अख्तियार किए है। शायद इस तरह की कोशिश कभी नहीं की गई । रामकृष्ण ने थोड़ी-सी कोशिश की थी। उन्होंने
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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