________________
प्रश्नोत्तर - प्रवचन- १५
જન્મ
और रमण के
कृष्णमूर्ति के पोछे बनेगी । कृष्णमूर्ति बनाने के विरोध में हैं पोछे बन नहीं सको । उस कोमत का आदमा नहीं मिला जो बढ़ा सके आगे बात को । रामकृष्ण को विवेकानन्द मिले। विवेकानन्द बहुत शक्तिशाली व्यक्ति थे, अनुभव नहीं । शक्तिशाला होने को वजह से उन्होंने चक्र तो चला दिया लेकिन चक्र में ज्यादा जान नहीं है। इसलिए वह जाने वाला नहीं है । रामकृष्ण बहुत अनुभवी हैं लेकिन शिक्षक होने की, तोथंकर होने की कोई स्थिति नहीं है उनकी । शिक्षक वह नहीं हो सकते इसलिए ऐसा कई बार होता है कि कंधे पर हाथ
विवेकानन्द के कन्धे पर
जब कोई व्यक्ति शिक्षक नहीं हो सकता तो वह दूसरे व्यक्ति के रखकर शिक्षण का कार्य करता है । तो राम कृष्ण ने हाथ रखकर शिक्षक का कार्य विवेकानन्द से लिया । लेकिन गड़बड़ हो गई । रामकृष्ण अपने आप शिक्षक नहीं हो सकते और विवेकानन्द अनुभवा नहीं हैं । इसलिए सब गड़बड़ हो गई । अस्त-व्यस्त हो गया सब मामला और फिर राम-कृष्ण को मृत्यु हो गई । फिर विवेकानन्द रह गए । विवेकानन्द ने जो शक्ल दी उस व्यवस्था को वह विवेकानन्द का है। विवेकानन्द एक बहुत बड़े व्यवस्थापक हैं । अगर विवेकानन्द को अनुभव होता तो एक श्रृंखला शुरू हो जाती । लेकिन वह नहीं हो सकी क्योंकि विवेकानन्द को काई अनुभव नहीं था । और जिसको अनुभव है वह व्यवस्थापक नहीं । रनरण के साथ हो सकती थी घटना क्योंकि वह उसी कीमत के आदमी हैं जिस कीमत के बुद्ध या महावीर हैं लेकिन वह नहीं हो सका क्योंकि काई आदमो नहीं उपलब्ध हो सका । कृष्णमूर्ति उसके विरोध में हैं इसलिए काई सवाल उठता नहो ।
प्रश्न : पश्चिम में भी क्या यह श्रृंखला है ?
उत्तर : पश्चिम में भी यह शृङ्खला है । पश्चिम में भी फकीरों की श्रृंखला है । जैसे जीसस की श्रृंखला चलो थोड़े दिनों तक । फिर शृङ्खला का द्वार बन्द . हो गया । उसके बाद दूसरो शृङ्खला चलो । जर्मनी में एकहार्ट नाम का एक बहुत कीमत का आदमी हुआ। लेकिन वह शृङ्खला नहीं पकड़ सका क्योंकि वह कोई शिक्षक नहीं था । जो बातें कहता है वे बेबूझ हो जाती हैं । समझाने की समझ न हो तो समझाया नहीं जा सकता । कुछ बातें एकदम विरोधी मालूम होती हैं । समझ लो तो ही उनके विरोधाभास को मिटाया जा सकता है और समझ के करीब लाया जा सकता है । बोहमे हुआ जर्मनी में । वह भी एक शृङ्खला बन सकता था लेकिन नहीं बन सका । सब शृङ्खलाएं धीरे-धीरे मर