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________________ જવા प्रश्नोत्तर - प्रवचन- १५ के सैकड़ों लोगों के पैदा होने की। ऊपर से दिखता है कि महावीर और बुद्ध दुश्मन हैं । लेकिन महावीर के विस्फोट का फल हैं बुद्ध । फल इन अर्थों में कि अगर महावीर न हों तो बुद्ध का होना मुश्किल है । ऊपर से लगता है कि अजित, पूर्ण काश्यप, गोशाल सब विरोधी हैं । लेकिन किसी को ख्याल नहीं है इस बात का कि वे सब एक ही श्रृंखला के हिस्से हैं । एक का 'विस्फोट हुआ है तो हवा बन गई है । उसको उपस्थिति ने सारी चेतनाओं को इकट्ठा कर दिया है और आग पकड़ गई है। अब इस आग पकड़ने में जिनकी सम्भावना ज्यादा होगी वह उतनी तीव्रता से फूट जाएँगे । इसलिए अक्सर ऐसा होता है कि एक युग में एक तरह के लोग पैदा हो जाते हैं। एक वक्त में, एक प्रदेश में, एकदम से प्रतिभा प्रकट होती है । इस प्रतिभा के भी आन्तरिक नियम और कारण हैं, तो चौबीस तीर्थंकरों का पैदा होना सीमित क्षेत्र में और वहीं-वहीं, एक ही देश में उसका कारण है । उस तरह की प्रतिभा के विस्फोट के लिए हवा चाहिए । प्रश्न : शृङ्खला में चौबीस व्यक्ति ही क्यों होते हैं ? पच्चीस क्यों नहीं होते, तीस क्यों नहीं होते ? उत्तर : हीं उसका भी कारण है । उसका संख्या से कोई सम्बन्ध नहीं है । असल में पच्चीस होते हैं, छब्बीस होते हैं, सत्ताईस होते हैं, कितने ही होते हैं इसका संख्या से कोई सम्बन्ध नहीं है । लेकिन जब एक श्रृंखला में एक बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति पैदा हो जाता है जैसे कि चौबीस तीर्थंकरों की शृंखला में महावीर सबसे ज्यादा प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं तब हमें परम बात उपलब्ध हो जाती है। जो जानना था, वह जान लिया गया है, जो पहचानना था, वह पहचान लिया गया है । जो कहना था, वह कह दिया गया है । और अनुयायी को हमेशा डर होता है कि अगर प्रतिभा के लिए आगे द्वार खुले तो प्रतिभा हमेशा अस्त-व्यस्त कर देती है क्योंकि वह विद्रोही है और अराजक है । तो अनुयायी भयभीत होता है । वह अपनी सुरक्षा के लिए व्यवस्था कर लेता है । वह कहता है कि अब बस ठोक है । प्रश्न: बीस तक क्या कम हैं ? उत्तर : हां, कम ही हैं। इन चौबीस तीर्थंकरों में महावीर केन्द्र हैं । इनके मुकाबले में कोई आदमी नहीं है। ज्ञान तो बराबर उपलब्ध होता है सबको । लेकिन महावीर के बराबर कोई अभिव्यक्ति नहीं कर पाता है, कोई समझा नहीं पाता है, कोई खबर नहीं पहुंचा पाता है । ३१
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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