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________________ ४७८ महावीर ; मेरी दृष्टि में ओर ध्वनि तरंगे हमें घेरे लेकिन उससे भी गहरी हो पाया । उन तरंगों सेवा नहीं को और इल्जाम रहेगा जब इस पर बड़ा काम चल रहा है क्योंकि आखिर चारों हुए हैं । यह उन पर निर्भर है कि हम क्या करें ? तरंगे हैं जिनका अभी विज्ञान को ठीक-ठीक पता नहीं पर काम करने वाले लोग हैं । महावीर ने कभी किसी की यह एक उनके ऊपर इल्जाम रहेगा । लेकिन तब तक यह तक हम पैसे के सिक्के पहचानते हैं । जिस दिन हम सौ रुपये शुरू कर देंगे उस दिन यह इल्जाम नहीं रह जाएगा बल्कि इसका पता चलेगा कि जो पैर दबा रहे थे, इसलिए दबा रहे थे कि वे और बड़ा कुछ नहीं कर सकते थे । इसलिए पैर दबा कर तृप्ति पा रहे थे। लेकिन पैर दबाने से होता के नोट पहचानना क्या है ? महावीर की अहिंसा उस तल पर है जिस तल पर सुख-दुःख पहुँचाने का भाव बिदा हो गया है, जहाँ सिर्फ महावीर जीते हैं । विज्ञान में इन्हीं तत्त्वों को कैटेलेटिक एजेन्ट कहते हैं जिनकी मौजूदगी से ही कुछ हो जाता है। जो खुद कुछ नहीं करते हैं अब जैसे कि हाइड्रोजन और आक्सीजन । इन दोनों को आप पास ले आएँ तो वे मिलते नहीं, अलग-अलग ही रहते हैं । लेकिन बीच से बिजली चमक जाए तो वे दोनों मिल जाते हैं और पानी बन जाता है। बिजली की चमक कोई योगदान नहीं करती । उन दोनों के मिलाने में उसका कोई योगदान नहीं है । सिर्फ उसकी मौजूदगी में वे मिल जाते हैं। उससे न कुछ जाता है, न कुछ माता है, न कुछ मिलता है, न कुछ छूटता है । बस वह मौजूद हो जाती है और वे मिल जाते हैं। जिस भाँति भौतिक तल पर कैटेलेटिक एजेन्ट हैं, वैसे ही आध्यात्मिक तल पर कुछ लोगों ने उनकी स्थिति को छुआ है, जहाँ उनकी मौजूदगी सिर्फ काम करती है, जहाँ वे कुछ भी नहीं करते । यानी महावीर की मौजूदगी ही काम कर देगी इस जगत् में जब वे मौजूद हैं। महावीर और कुछ भी नहीं करेंगे, वह सिर्फ हो जाएँगे । उनका होना काफी है । चेतना के बल पर उनकी मौजूदगी हजारों, लाखों चेतनाओं को जगा देगी, स्वस्थ कर देगी, लेकिन अभी इसकी खोज-बीन होना बाकी है वैज्ञानिक तल पर | आध्यात्मिक तल पर तो खोज-बीन पुरानी है । लेकिन विज्ञान की भाषा में अध्यात्म को समझाया जा सके यह कभी किसी ने सोचा ही नहीं है । यह कभी आप सोचते ही नहीं हैं कि आप हर हालत में वही नहीं होते । आप हर स्थिति में बदल जाते हैं। अगर आप मेरे सामने हैं तो आप बही आदमी नहीं हैं जो आप घड़ी भर पहले थे। आपके भीतर कुछ ऐसा उठ
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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