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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में तक निकल ही चुका हूँगा। मैंने सूखा हो वृक्ष देखा था । मुझे पता भी नहीं चलेगा कि कब हरा हो गया । अगर किसी मरीज पर छाया पड़ जाए तो वह स्वस्थ हो जाएगा लेकिन मुझे पता भी न चले। मैं 'मैं' को भंझट में ही नहीं पड़ना चाहता । फिर कहते हैं उस फरिश्ते ने उसे वरदान दिया। फिर वह सूखे खेतों के पास से निकलता तो वे हरे हो जाते, और सूखे वृक्षों पर उसकी छाया पड़ जाती तो उनमें पत्ते निकल आते, और बीमार ठीक हो जाते, मुर्दे जिन्दा हो जाते, अन्धे को आंख मिल जाती, बहरे को कान मिल जाते । ये सब उसके आस-पास घटित होने लगा । लेकिन उसे कभी पता नहीं चला। उसे पता चलने का कारण भी न था क्योंकि उसकी छाया से यह घटित होते थे । उसका कोई सीधा सम्बन्ध नहीं था । असल में जो परम स्थिति को उपलब्ध होते हैं, उनका होना मात्र करुणा है । उनकी मौजूदगी मात्र काफी है। जो भी होता है उनकी छाया से होता है । उन्हें कुछ सीधा नहीं करना पड़ता। जिनके पास ऐसी छाया नहीं हैं उन्हें कुछ सीधा करना पड़ता है। लेकिन वह पैसे के सिक्के हैं। हमें हिसाब मिल जाता है कि इन्होंने कितनो सेवा की, कितने कोढ़ियों की मालिश की, कितने बीमारों का इलाज किया, कितने अस्पताल खोले । ये बिल्कुल कौड़ियों की बातें हैं । इनका कोई भी मूल्य नहीं है बहुत गहरे में । ४७६ श्री अरविन्द आजादी के शुरू दिनों में आतुर थे और शायद उनसे अधिक प्रतिभाशाली कोई व्यक्ति हिन्दुस्तान की आजादी के आन्दोलन में कभी नहीं आया । लेकिन अचानक एक मुकदमें के बाद वह सब छोड़ कर चले गए । मित्र घबराये कि जिनसे प्रेरणा मिलती थी, वह आदमी चला गया । जाकर अरविन्द से कहा कि आप भाग आए । अरविन्द ने कहा, मैं भाग नहीं आया । पैसे कोड़ी का काम तुम्हीं कर लो, वह तुम कर सकोगे । मैं कुछ और बड़े काम में लगा हूँ जो मैं कर सकता हूँ। और इस मुल्क में, भारत की स्वतन्त्रता के लिए जितना काम अरविन्द ने किया उतना किसी ने भी नहीं किया । लेकिन भारत की स्वतन्त्रता के इतिहास में अरविन्द का नाम शायद ही लिखा जाए । क्योंकि अरविन्द ने जो काम किया उसका हिसाव कौड़ियों का हिसाब रखने वाले नहीं रख सकते। वह आदमी चौबीस घंटे जागकर सारे प्राणों से इस मुल्क को जिस भाँति बाम्दोलित करने की चेष्टा करता रहा उसका हम कोई हिसाब नहीं रख सकते । यह हो सकता है कि गांधी में जो बल था, था, सुभाष में जो ताकत थी, वह अरविन्द की थी । वह बल अरविन्द का
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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