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________________ प्रश्नोत्तर - प्रवचन- १४ लेकिन कभी-कमी जरूरत है । सारे अस्तित्व की हमें जरूरत है अपने लिए। ऐसा व्यक्ति भी पैदा हो जाता है जिसके लिए अस्तित्व को उसकी जरूरत है कि वह हो जाए तो थोड़ी देर रह जाए, और उसके लिए कोई असुविधा न हो । और महावीर इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि अगर हमें जिन्दा रखना हो तो आज ऐसा इन्तजाम हो जाए; नहीं तो हम वापस लौट जाएँगे । न कोई शिकायत है पीछे लौटने से, न कोई नाराजगी है। इतनी ही खबर जरूर है कि अस्तित्व कहता है अब तुम्हारी जरूरत नहीं । वह हम स्वीकार कर लेंगे ओर बिदा हो जाएंगे। इस वजह से वे वैसा भाव लेकर चलते हैं । लेकिन उसको नहीं समझा जा सका । ऐसा आदमी चुनौती दे रहा है विश्वसत्ता को कि रखना हो तो रखो अन्यथा हम जाते हैं । ४४७ प्रश्न : महावीर को पारिवारिक या सामाजिक कौन-सा असंतोष पा ? क्या उनका गृहत्याग जबाबदारियों से पलायन नहीं है ? उत्तर : पहली बात यह है कि महावीर को न तो कोई पारिवारिक असंतोष था, और न कोई सामाजिक असंतोष था । इस जन्म में तो कोई व्यक्तिगत असंतोष भी नहीं था । आम तौर से तीन तरह के असंतोष होते हैं । पारिवारिक असंतोष, सामाजिक असंतोष या वैयक्तिक असंतोष । पारिवारिक असंतोष आर्थिक हो सकता है, विवाह दाम्पत्य का हो सकता है, शरीर की सुविधा- असुविधा का हो सकता है। वैसा असंतोष जिसे है वह आदमी कभी धार्मिक नहीं हो सकता। क्योंकि वैसा आदमी उस असंतोष को मिटाने में लगा रहता है । वैसा आदमी अत्यधिक भौतिक होता है । फिर सामाजिक असंतोष है । व्यवस्था है, समाज की नीति है, नियम है, शोषण है, धन है, राज्य है, सम्पत्ति है, वितरण है। यह सब है । ऐसा सामाजिक, क्रान्तिकारी, सुधारक व्यक्ति भी धार्मिक नहीं होता है वह व्यक्ति जिसके असंतोष का न समाज से कोई सम्बन्ध है, न परिवार से . कोई सम्बन्ध है, न सम्पत्ति से कोई सम्बन्ध है, न शरीर से कोई सम्बन्ध है, जिसके असंतोष का एक ही अर्थ है कि मेरा होना मात्र अभी ऐसा नहीं है कि जिससे मैं सन्तुष्ट हो जाऊँ, जिसकी आखिरी चिन्ता इस बात की है कि मैं जैसा हूँ क्या ऐसा ही होना काफी है, पर्याप्त है ? अगर हिंसक हूँ तो हिंसक होना ही काफी है, पर्याप्त है ? अगर क्रोधी हूँ तो क्रोषित होना ही काफी है ? अशान्त हैं तो अशान्त होना ही ठीक है ? दुःखी है, अशानी हूं, सत्य का कोई पता नहीं, प्रेम का कोई अनुभव नहीं, क्या ऐसा होना ही काफी है ? एक ऐसा असन्तोष असंतोष भी होता है । ऐसा । धार्मिक होता
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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