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________________ ૪૪૧ महावीर । मेरी दृष्टि में • महावीर एक-एक दिन भी रहे हैं, अपने लिए नहीं, अगर जरूरत है परमात्मा को तो ही । और उनका पूरा जीवन इस बात का प्रमाण है कि विश्वसत्ता को जिस व्यक्ति की जरूरत है, वह उसके लिए आयोजित करती है। जिसकी स्वांस से, जिसके होने से, जिसके जीने से, जिसकी मांख से, जिसके चलने से कुछ घटित हो रहा है, जोकि कल्प-कल्प बीत जाए तो बुबारा घटित मुश्किल से होता है विश्वसत्ता को जरूरत है उसके अस्तित्व की तो वह उसके लिए आयोजन करती है । तो एक-एक दिन के लिए महावीर जी रहे हैं । ऐसा भी नहीं है कि इकट्ठा एक दिन तय कर लिया तो बारह साल के लिए काफी हो गया। इस आदमी को अपनी ओर से जीने का कोई मोह नहीं रह गया । बहुत कीमती है यह बात कि कोई व्यक्ति चाहे तो बराबर वैसा जी सकता है लेकिन तभी जब उसे अपने जीवन का मोह बिदा हो गया हो । तब पूरा अस्तित्व उसके प्रति मोहपूर्ण हो जाता है। और उसे बनाने के उपाय करने लगता है, और उसके ढंग की, बेढंग की शर्तें भी स्वीकार करने लगता है । फिर वह क्या कहता है क्या नहीं कहता, कैसा उठता है कैसा बैठता है सबको स्वीकृति हो जाती है । सारा जगत् एक गहरे प्रेम से उसे घेर लेता है और उसके लिए जो भी किया जा सके, करने लगता है । जाती है । बुद्ध के गृहत्याग की कथा प्रचलित है । बुद्ध घर से चले आधी रात की । उनके घोड़े के पैरों की टाप ऐसी है कि वह बारह कोस तक सुनी बुद्ध उस घोड़े पर सवार होकर चले हैं । घोड़े की टाप इतनी होगी कि सारा महरू जग जाए । कहानी कहती है कि घोड़े के टाप के नीचे देवता फूल रखते चले जाते हैं। बहुत कल्पों के टाप फूलों पर पड़ती है ताकि गांव में कोई जग न जाए। क्योंकि बाद ही कभी कोई व्यक्ति महाअभिनिष्क्रमण करता है । जब वे नगर के द्वार पर पहुँचते हैं तो बड़ी-बड़ी कीलें हैं वहां जिन्हें पागल हाथी खुल नहीं सकतीं। और जब द्वार खुलते हैं तो उनकी इतनी पूरा नगर सुनता है मगर जब बुद्ध वहाँ पहुँचते है तो देवता देते हैं जैसे वह बन्द हो न था । यह सारी कहानियाँ निर्मित हैं । लेकिन साथ-साथ ही ये इस बात की भी सूचक है कि ऐसे व्यक्ति भी धक्के मारे तो आवाज होती है कि द्वार को ऐसा खोल के लिए सारा जगत्, सारा अस्तित्व सुविधा देने लगता है क्योंकि इस सारे जगत् को, इस सारे अस्तित्व को इस आदमी की जरूरत है । मगर हम सबके लिए अस्तित्व की आवश्यकता रहती है । श्वांस चले इसलिए हवा की जरूरत है, प्यास बुझे इसलिए पानी की जरूरत है, गर्मी मिले इसलिए सूरज की 1
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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