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प्रल: ऐसा कोई व्यक्तियों नहीं मिल सका जिसके चरणों में महावीर मात्मसमर्पण कर सके ? महावीर क्या सोच रहे हैं जिसकी वजह से किसी गुरु के पास नहीं गए? इस सम्बन्ध में महावीर क्या कहते है ?
उत्तर जीवन में बहुत कुछ है जो दूसरे से नहीं मिल सकता और जो भी
वो भी सत्य है सुपर, उसे दूसरे से पाने का कोई भी उपाय नहीं है। जो दूसरे से पाया जा सकता है, उसका कोई महत्व नहीं। क्योंकि जिसे हम दूसरे से पा लेते है यह हमारे प्राणों से विकसित हुमा नहीं होगा। यह ऐसा हो है जैसे कागज के फूल कोई पागार से ने माप और घर को सजा से । वृक्षों से बाए हुए फूलों की बात दूसरी है। रेबीवन्त है। मगर वे भी मृत हो जाते है। बोड़ी देर पुण्यस्ते में धोखा दे सकते हैं पीक्ति होने का । लेकिन फिर भी वे जीवित नहीं है। सस्य के फूस कमी उचार नहीं मिलते। इसलिए वो भी सत्य को खोज निकला हो, वह गुरको खोजने नहीं निकलता है। ही, असत्य को खोजने कोई निकला हो तो गुरु की खोज बहुत जरूरी है। सत्य की खोज में गुरु एकदम मनावश्यक है। लेकिन शिष्यत्व यानी सीलने की ममता बहुत बावश्यक है। इसकी सपाल सीखने की क्षमता का है और जिसके पास साबले की समता है वह गुरु नहीं बनाता, सीखता पका जाता है। गुरु बनाना एक तरह का बन्धन निर्मित करना है। वह इस बात को पेष्टाकि सत्य पाएंगे तो इस व्यक्ति से और कहीं से नहीं।
मेरा मानना है कि तत्व कोई ऐसी पीष नहीं है वो किसी एक व्यक्ति से प्रवाहित हो। सत्वपूरे बीपल पर छाया हुमा है। बगर हम सीखने को उत्सुक है,तो सत्व सब बहले सीमापाता। गुगल समाए किनिन्दनी