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________________ 'प्रवचन-१ न कुछ दे ही जाते हैं । तुम बोलते नहीं हो कि क्या तुम्हारे भीतर है। वह सब चुका दो, कम से कम टैक्स दे दो, सम्पत्ति मत दो; नहीं तो हम क्या कहेंगे, एक आदमी के पास था, वह बिल्कुल ले गया, बिल्कुल ले गया चुपचाप ? ऐसा नहीं हो सकता, इस चुंगो-चौकी के बाहर नहीं जाने देंगे । जबरदस्ती लाओत्से को रोक लिया। वह भी हंसा । उसने कहा : बात तो शायद ठीक ही है। लिए तो जाता हूँ। लेकिन देने का कोई उपाय नहीं है, इसलिए जाता हूँ और कुछ नहीं। देना में भी चाहता हूँ। तब उसने एक छोटी-सी किताब लिखी। उस तरह के असाधारण लोगों में लिखने वाला वह अकेला प्रादमी है। पर पहला ही वाक्य यह लिखा है "बड़ी भूल हुई जाती है, जो कहना है वह कहा नहीं जाता। और जो नहीं कहना है वही कहा जाएगा। सत्य बोला नहीं जा सकता। जो बोला जा सकता है वह सत्य हो नहीं सकता। बड़ी भूल हुई जाती है। और मैं इसको जानकर लिखने बैठा हूँ, इसलिए जो भी आगे पढ़ोगे, इसको जानकर पढ़ना कि सत्य तोला नहीं जा सकता, कहा नहीं जा सकता। और जो कहा जा सकता है, वह सत्य हो नहीं सकता। That which can be said is not the Toa.' इसे पहले समझ लेना फिर किताव पढ़ना।" तो किसी ने किताब लिखी नहीं जिसने लिखो उसने प्रश्नचिह्न पहले लगा दिया। यानो सच तो यह है कि जो समझ जाएगा उसके आगे किताब पढ़ेगा ही नहीं। मामला यह है कि लाओत्से होशियार आदमी मालूम होता है । राजा समझा.कि हम चुंगो ले रहे हैं। वह गल्तो में पड़ गया। जो समझेगा वह उसके आगे किताब पढ़ेगा नहीं। बात खत्म हो गई है । जो नहीं समझेगा वह पढ़ डालेगा। उससे कोई मतलब नहीं। तो नासमझ किताबें पढ़ते हैं, समझदार रुक जाते हैं। बुद्ध महावीर जैसे लोगों ने किताब नहीं लिखी। कारण हैं बहुत । पक्का नहीं है कि जो कहना है वह कहा जा सकता है। फिर भी कहा। कहने का माध्यम उन्होंने चुना, लिखने का नहीं चुना । इसका भी कारण है। क्योंकि कहने का माध्यम प्रत्यक्ष है आमने-सामने और मैं गया, आप गए कि खो गया। लिखने का माध्यम स्थायी है, आमने-सामने नहीं है । परोक्ष है । न मैं रहूँगा, न आप रहेंगे, वह रहेगा, वह हम से स्वतन्त्र होकर जाएगा। कहने में भूल होती है लेकिन फिर भी सामने है आदमी। अगर मैं कुछ कह रहा है, तो आप मुझे देख रहे हैं; मेरी आँख को देख रहे हैं, मेरो तड़प, मेरी पीड़ा को भी
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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