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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में चीज़ सब संग्रह करता है। चाहे धन संग्रह संग्रह करे, इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता । अन्दर कि इकट्ठा कर लो। लेकिन कुछ कुछ थोड़ा-बहुत भर्थ भी हो सकता हैइकट्ठा करने में थोड़ा अर्थ हो सकता है और परिग्रही वृत्ति का ही यानी परिग्रही व्यक्ति का सार्थक भी है क्योंकि परिग्रही जो व्यक्ति होगा, वह करे, चाहे शब्द संग्रह करे, चाहे यश एक परिग्रह की वृत्ति है मनुष्य के चीजें ऐसी हैं जिनके इकट्ठा करने में जैसे कि कोई धन इकट्ठा करें। धन क्योकि धन पुरिग्रह की वृत्ति से ही पैदा हुआ है वाहन है, परिग्रही वृत्ति की हो विनिमय मुद्रा है । ही धन आविष्कार है । धन का कोई व्यक्ति संग्रह करे तो धन परिग्रह का ही माध्यम है और परिग्रह के लिए ही है लेकिन जिस अनुभव से महावीर गुजरे हैं वह अपरिग्रह में घटा है । और उनके शब्दों को जो इकट्ठा कर रहा है, वह परिग्रही वृत्ति का व्यक्ति है । महावीर को उत्सुकता नहीं है शब्द संग्रह की, न बुद्ध को है, न क्राइस्ट को है । वैसे तो महावीर भी किताब लिख सकते थे लेकिन महावीर ने किताब नहीं लिखी, कृष्ण ने भी किताब नहीं लिखी, बुद्ध ने भी किताब नहीं लिखी और जीसस ने भी किताब नहीं लिखी । सिर्फ लाओत्से ने, इन असाधारण लोगों में से, किंताब लिखी और वह भी जबरदस्ती में लिखी । लोग कहते कि जाएगा । जो नहीं पड़ता । पैदा हो गया कि लाओत्से ने अस्सी साल की उम्र तक किताब नहीं लिखी । कुछ लिखो । और वह कहता कि जो लिखूंगां वह झूठ हो लिखना है वह लिखा नहीं जाता, इसलिए इस उपद्रव में मैं अस्सी साल तक बचा रहा लेकिन सारे मुल्क में यह भाव अब बूढ़ा हुआ जाता हैं, अब मर जाएगा, जो जानता है वह खो जाएगा । अन्तिम उम्र में लाओत्से पर्वतों की तरफ चला गया, सब छोड़-छाड़कर, पता नहीं कि वह कब मरा। उसने कहा कि इससे पहले कि मृत्यु छीने, मुझे खुद ही चला जाना चाहिए । आखिर मृत्यु की प्रतीक्षा क्यों करें, इतना परवश भी क्यों हों ? जब वह चीन की रेखा सीमा छोड़ने लगा तो चीन के सम्राट् ने चुंगी चौकी पर और कहा कि कहा कैसा टैक्स ? न हम 1 उसे रुकवा दिया अपनी टैक्स चुकाए बिना नहीं जाने देंगे | लाओत्से ने कोई सामान ले जाते है बाहर, न कुछ लाते हैं, अकेले जाते हैं । खाली; सच तो यह है कि जिन्दगी भर से खाली हैं । कुछ सामान कभी गया नहीं जिस पर टैक्स देना पड़े। टैक्स कैसा ? सम्राट् ने बहुत मजाक किया और उससे कहा कि टैक्स तो बहुत-बहुत लिए जाते हैं । इतनी सम्पत्ति कभी कोई आदमी ले हो नहीं गया, सब कुछ
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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