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महावीर । मेरी दृष्टि में
दो कारण-परम्पराएं यहां मिल रही हैं ।एक शरीर के अणुओं की, एक मात्मा की। शरीर के अणुओं से बनेगा शरीर । लेकिन उस शरीर को चुनेगा कौन ? यहां हम पचास मकान, पचास ढंग के बनाएं। आप मकान खरीदने माएँ। आप पचास में से हर कोई मकान नहीं चुन लेते। आप खोजते हैं, फिर भाप एक मकान चुन लेते हैं। आपके भीतर उसके चुनाव के कारण होते हैं । हो सकता है कि आपके ख्याल सौन्दर्य रुचि वाले हों कि बड़ा सुन्दर मकान चाहिए हो सकता है कि सुविधा के ख्याल हों कि सुविधापूर्ण मकान चाहिए। बड़ा चाहिए, छोटा चाहिए, कैसा चाहिए ? वह आपके भीतर है। तो दोहरे कारण हैं। एक तो इंजीनियर मकान बना रहा है। उसके भी मकान पचास बन गये हैं। उसके भी कारण हैं पचास मकान बनाने के। वह भी हर कुछ नहीं बना देगा। उसके अपने भीतरी कारण हैं, अपनी दृष्टि है, अपने विचार है, अपनी धारणाएं हैं । फिर आप चुनाव करते हैं। पचास में से आपने एक चुना। तो यहाँ दोहरी कारण-शृंखलाओं का मिलन हुआ। एक इंजीनियर की कारणशृंखला और दूसरी आपकी अपनी कारणशृंखला । हो सकता है कि आप पचास में से कोई भी न चुनें, वापस चले जाएं कि यहाँ मुझे कुछ पसंद नहीं पड़ता। इन दोनों ने क्रास किया और आपने खास मकान चुना। जो शरीर हमने चुना है. वह हमने चुना है। वह हमारा चुनाव है, चाहे वह अचेतन हो, चाहे वह चेतन हो। लेकिन जो शरीर हमने चुना है उसमें भी कर्म का प्रभाव है क्योंकि कार्य-कारण से अन्यथा कुछ हो ही नहीं सकता।
प्रश्न : एक गांव है। उसमें जो बच्चे हैं वे तस प्रतिशत दो साल बाद मर जाते हैं। लेकिन क्या ऐसी व्यवस्था है कि सौ के सौ ही जिन्दा रह जाएं ? क्या नस्ल सुधारी जा सकती है ?
उत्तर : हाँ बिल्कुल सुधारी जा सकती है। बिल्कुल सुधारी जा सकती • है। फिर वे बच्चे पैदा नहीं होंगे उस गांव में जो दो साल में मरते हैं । एक चौर गाँव है जिसमें दो साल में हर दस में से आठ बच्चे मर जाते हैं। इस गांव में वे ही बच्चे आकर्षित होते है जिनकी दो साल से ज्यादा जीने की सम्भावना नहीं। अगर इस गांव की नस्ल सुधार दी जाए तो इसका मतलब हुमा कि इंजीनियर ने दूसरे मकान बनाए जिनमें वे ही यात्री आकर्षित होंगे जो अभी आकर्षित नहीं हुए थे। इस गाँव में अब वे बच्चे पैदा होंगे जो सो वर्ष जिन्दा रहने के लिए आए हुए हैं ।
प्रश्न : लेकिन क्या सब गांव में ऐसा किया जा सकता है ?