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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१२
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नहीं होता । अन्तराल हो ही नहीं सकता। अगर अन्तराल बीच में आ जाएगा तो कार्य-कारण विच्छिन्न हो जाएंगे। उनका सम्बन्ध टूट जाएगा। मैं अभी आग में हाथ डालूंगा तो अगले जन्म में जलूंगा। अगर मुझसे कोई कहे तो यह समझ के बाहर बात हो जाएगी क्योंकि हाथ मैंने अभी डाला और जलँगा अगले जन्म में। कारण तो अभी है और कार्य होगा अगले जन्म में । यह अन्तराल किसी भांति समझाया नहीं जा सकता। और कार्य-कारण में अन्तराल होता ही नहीं । कार्य और कारण एक ही प्रक्रिया के दो रूप हैं, जुड़े हुए और संयुक्त । इस छोर पर जो कारण है उसी छोर पर वह कार्य है। और यह पूरी श्रृंखला जुड़ी हुई है। इसमें कहीं क्षण भर के लिए भी अगर अन्तराल हो गया तो श्रृंखला टूट जाएगी। लेकिन इस तरह के सिद्धान्त की, इस तरह की भ्रान्ति की कुछ वजह थी और वह यह कि जीवन में हम देखते हैं कि एक आदमी भला है और दुःख उठाता हुआ मालूम पड़ता है। एक आदमी बुरा है और सुख उठाता हुना मालूम पड़ता है। इस घटना ने कर्मवाद के पूरे सिद्धान्त की गलत व्याख्या को जन्म दिया है। इस घटना को कैसे समझाया जाए ? अमर प्रतिपल हमारे कार्य और कारण जुड़े हुए हैं तो फिर इसे कैसे बताया जाए ? एक आदमी भला है, सच्चरित्र है, ईमानदार है और दुःख भोग रहा है, कष्ट पा रहा है,
और एक मादमी पुरा है, बेईमान है, बदमाश है और सुख पा रहा है, पद पा रहा है, यश पा रहा है, धन पा रहा है। इस घटना को कैसे समझाया जाए ? अगर अच्छे कार्य तत्काल फल लाते हैं तो अच्छे बादमी को सुख भोगना चाहिए। और अवर पुरे कार्य तत्काल बुरा लाते हैं, तो बुरे आदमी को दुःख भोगमा चाहिए। लेकिन यह तो दिखता नहीं। भला आदमी परेशान दिखता है, बुरा आदमी परेशान नहीं दिखता। तो इसको कैसे समझाएं ? इसको समझाने के पागलपन में गड़बड़ हो गई। तब रास्ता एक ही मिला कि नो गच्छा भादमी दुःख भोग रहा है, वह अपने पिछले बुरे कार्यों के कारण और जो बुरा आदमी, सुख भोग रहा है वह अपने पिछले अच्छे कर्मों के कारण । हमें एक-एक जीवन का अन्तराल खड़ा करना पड़ा इस स्थिति को सुलझाने के लिए। लेकिन इस स्थिति को सुलझाने के दूसरे उपाय हो सकते थे और असल में दूसरे उपाय ही सच है । यह स्थिति इस तरह सुलझाई नहीं गई बल्कि कर्मवाद का पूरा सिद्धान्त विकृत हो गया है भोर कर्मवाद को उपादेयता भी नष्ट हो गई है।
कर्मवाद की उपादेयता थी कि हम प्रत्येक व्यक्ति को कह सके कि तुम जो कर रहे हो, वही तुम भोग रहे हो। इसलिए तुम ऐसा करो कि तुम सुख भोग