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प्रश्न : आपने कहा कि सामायिक आत्म-स्थिति है। लेकिन जिसे आप सामायिक या आत्म-स्थिति कह रहे हैं क्या वह वीतरागता ही नहीं ? और जब व्यक्ति मात्म-स्थिति में यानी चेतना-स्थिति में हो गया है तो फिर वह जीवन-व्यवहार में माकर क्या आत्म-स्थिति को नहीं खो देगा?
उत्तर : नहीं, नहीं खो देगा। जैसे कि आप स्वांस ले रहे हैं, तो चाहे जगें, चाहे सोएं, चाहे काम करें, चाहे न करें, स्वांस चलती रहेगी क्योंकि वह जीवन की स्थिति है । ऐसी ही चेतना को स्थिति है । और एक बार वह हमारे ख्याल में आ जाए तो फिर वह मिटती नहीं। यानी जीवन-व्यवहार में उसका ध्यान नहीं रखना पड़ता कि वह बनी रहे, वह बनी ही रहती है। जैसे एक आदमी धनपति है और उसे पता है कि मेरे पास धन है तो उसे चौबीस घंटे याद नहीं रखना पड़ता कि वह धनपति है। लेकिन वह धनपति होने की स्थिति उसकी बनी रहती है चौबीस घंटे। चाहे वह कुछ भी कर रहा हो, वह सड़क पर चल रहा है, काम कर रहा है, उठ रहा है, बैठ रहा है इससे कोई मतलब नहीं। एक भिखारी है, वह कुछ भी कर रहा है। उसकी वह . स्थिति भिखारी होने की बनी ही रहती है। हमारी स्थितियां हमारे साथ ही चलती हैं । होनी चाहिए बस यह है बड़ा सवाल। तो एक पल के हजारवें हिस्से में भी अगर हमें अनुभव में आया है तो वह बना रहेगा क्योंकि हमारे पास पल के हजारवें हिस्से से बड़ा कोई समय होता ही नहीं। उतना ही समय होता है हमेशा । जब भी होगा, उतना ही होगा। वह हमें दिखाई पड़ गया तो बना रहेगा। गीता में जिसे स्थितप्रज्ञ कह रहे हैं, वह वही बात है। उसमें कुछ फर्क नहीं। सामायिक और वीतराग में जो समानता दिखाई