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________________ प्रश्नोत्तरवचन-११ ३४३ सवाल नहीं है । मेरी निरन्तर यह धारणा रही है कि अनैतिक व्यक्ति को जितना बुरा कहा गया है, वह कहना गलत है । नैतिक व्यक्ति को जितना भला कहा गया है, वह कहना भी गलत है। मेरी समझ में जीवन की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि व्यक्ति को सरल और सहज होने का उपाय और मौका हो, न उसकी निन्दा हो, न उसका दमन हो, न उसको जबरदस्ती ढालने-बदलने की चेष्टा हो । लेकिन समाज उसे समझने का विज्ञान और व्यवस्था देता हो; शिक्षा उसे समझने का मौका देती हो। एक बच्चा स्कूल में गया। हम उससे कहते हैं : क्रोध मत करो, क्रोध बुरा है। हम दमन सिखा रहे हैं । सच्चा और अच्छा स्कूल उसे सिखाएगा : क्रोध करो लेकिन जागे हुए। कैसे करो, हम इसकी विधि बताते हैं । क्रोध जरूर करो, लेकिन जागे हुए, जानते हुए, पहचानते हुए करो। हम क्रोध का दुश्मन तुम्हें नहीं बनाते। केवल तुम्हें हम समझदार क्रोध करना सिखाते हैं। अगर ऐसी व्यवस्था हो तो व्यक्ति धीरे-धीरे क्रोध के बाहर हो जाएगा क्योंकि समझपूर्वक कोई कभी क्रोष नहीं कर सकता है। __ मेरी बात कई दफा उल्टी दिखती है। कई दफा ऐसा लगता है कि इससे स्वच्छंदता फैल जाएगी, अराजकता फैल जाएगी। लेकिन अराजकता फैली हुई है, स्वच्छंदता फैली हुई है। मैं जो कह रहा हूँ उससे स्वच्छंदता मिटेगी, अराजकता मिटेगो । मेरी बातों से कई दफा ऐसा हो सकता है कि साधारण मादमी भ्रान्त हो जाए, गलत रास्ते पर चला जाए । इस सब में एक बात तुम मान कर चले हो कि साधारण आदमी ठीक रास्ते पर है। अगर यह मानकर चलोगे तो हो सकता है कि साधारण आदमी इसलिए साधारण बना है कि वह गलत रास्ते पर है। नहीं तो कोई आदमी ऐसा नहीं जो असाधारण न हो जाए। लेकिन जिन रास्तों पर वह चल रहा है, वे रास्ते ही उसे साधारण बना रहे हैं। मैं जानता हूँ कि रास्ते साधारण या असाधारण बनाते है। जिन रास्तों पर हम चल रहे हैं, वे रास्ते हमें साधारण बना देते हैं। ऐसे रास्ते भी हैं जो हमें असाधारण बना सकते हैं पर उन पर हम चलेंगे तभी। समाज चाहता नहीं कि व्यक्ति असाधारण बने। समाज साधारण व्यक्ति चाहता है क्योंकि साधारण व्यक्ति खतरनाक नहीं होते, विद्रोही नहीं होते, अद्वितीय नहीं होते, व्यक्ति ही नहीं होते, सिर्फ भीड़ होते हैं। समाज चाहता है भीड़, नेता चाहते हैं भीड़, गुरु चाहते हैं भीड़ शोषक चाहते हैं भीड़ जिसमें कोई व्यक्तित्व न हो। उस भीड़ का शोषण किया जा सकता है। और मैं कहता हूँ कि चाहिए व्यक्ति क्योंकि भीडाकी कभी आत्मा नहीं होती। और एक ऐसी दुनिया, एक
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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