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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में उस घंटे में भी विस्मृत नहीं हो पाते। वे चौबीस घंटे उसी रस में डूबे हुए हैं। मैं उन्हें ब्रह्मचर्य की ओर ले जाने की बात कर रहा है। मैं कह रहा है कि सत्य को समझो, इससे भागो मत, डरो मत, भयभीत मत हो, इसे पहचानो, जागो। जागोगे, पहचानोगे, समकोये तो यह क्षीण होगा, और एक घड़ी ऐसी आती है कि पूर्ण समझ की स्थिति में सेक्स रूपान्तरित हो जाता है। उसकी सारी शक्ति नए मार्गों से उठनी शुरू हो जाती है। पौर षब वह नए मार्गों से उठती है तो वह शक्ति व्यक्ति का परम अनुभव हो जाता है। __ सेक्स शक्ति के विसर्जन का सबसे नीचे का केन्द्र है। उसके ऊपर और केन्द्र है जिसे हम ब्रह्मरंध्र कहते हैं। वह सेक्स की ही ऊर्जा के विसर्जित होने का अन्तिम श्रेष्ठतम केन्द्र है। नीचे से सेक्स विसर्जित होता है तो प्रकृति में ले जाता है। और जब ब्रह्मरंध्र से सेक्स की शक्ति विसजित होती है तो वह परमात्मा में ले जाती है। और इन दोनों के बीच की जो यात्रा है, वह वात्रा वही शक्ति कर सकती है जो समापूर्वक सेक्स को ऊर्जा को ऊपर उठाने के प्रयोग में लग जाए। मेरा कहना है कि ब्रह्मचर्य की साधना में सेक्स पहला कदम है, विरोष नहीं। जिस ऊर्जा को हमें ऊपर उठाना हो, उसे लड़कर हम ऊपर नहीं उठा सकते। उसे समझकर हम प्रेमपूर्ण भामंत्रण से ही ऊपर उठा सकते हैं क्योंकि लड़कर तो हम दो हिस्सों में टूट जाते हैं। और दो हिस्सों में टूटे कि हम गए । पाखण्डी व्यक्ति खंड-खंड हो जाता है। कई बंर उसमें हो जाते हैं । और मैं चाहता हूँ कि व्यक्ति हो अखण क्योंकि अखण्ड व्यकि ही कुछ रूपान्तरण ला सकता है। ब्रह्मचर्य सरल है अगर पोपा न जाए। बहवर्य कठिन है अगर थोप लिया जाए। तो मैं कहता है कि समाज को सिखायो वासना, ठीक से । समाज को सम्यक् वासना सिखामो, सम्यक् काम सिखामो। प्रश्न : महावीर भी यही कहना चाहते थे? . उत्तर : बिल्कुल कहेंगे ही। इसके सिवाय उपाय ही नहीं है, क्योंकि महाबीर भी जिस ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हुए हैं, वह जन्म-जन्मान्तरों की वासना की समझ का ही परिणाम है। प्रश्न : वह भोगकर माएगी या बिना भोग के भी मा सकती है? उत्तर : बिना भोग के नहीं आ सकती। जिस चीज को मैंने जाना ही नहीं, जिया ही नहीं, उसको मैं समझूगा कैसे ? समझने के लिए मुझे गुजरना पड़ेगा उस मार्ग से । वहां कभी भी कोई गुजरा हो, यह सवाल नहीं है। लेकिनः ।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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