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________________ ३२३ बना देना । बिल्कुल राजी होकर घूंसे को पी जाना तब उसके हाथ की हड्डी टूट जाएगी और तुम बच जाओगे । बहुत कठिन है यह क्योंकि जब कोई आपकी छाती में घूंसा मारे तो आपकी छाती सख्त हो जाएगी फौरन । और सस्ती में आपकी हड्डी टूट जाने वाली है । जैसे दो आदमी चल रहे हैं एक बैलगाड़ी में -बैठे हुए। एक शराब पिए हुए है। एक बिल्कुल शराब पिए हुए नहीं है । बैलगाड़ी उलट गई। तो जो शराब पिए हुए है उसको चोट लगने की सम्भावना कम है । जो शराब नहीं पिए है उसको चोट लगेगी । कारण कि वह शराब जो पिए है वह हर हालत में राजी है । वह उलट गई तो वह उसी में उलट गया । उसने बचाव का कोई उपाय नहीं किया। लेकिन वह जो होश में है, बैलगाड़ी उलटी तो वह सजग हो गया। उसने कहा, 'मरे। बचाओ ।' तो वह सब सख्त हो गया । जो हड्डियां सख्त हो गई, 'टूटी ।' इसलिए शराब पीने वाला गिरता है उस बेचारे की ? आप जरा गिर कर देखो । बोरा गिर रहा है । उसमें कुछ है ही नहीं गिर गया तो गिर गया, उसी के लिए राजी हो गया । उसको चोट नहीं लगती । तो जुजुत्सू कहता है कि अगर चोट. न खानी हो तो ऐसे गिरना कि जैसे गिरे ही हुए हो । यानी तुम नहीं गिरना है इसका ऐसा ख्याल हो मत करना । उन पर जरा सी चोट लगी कि सड़कों पर । कभी हड्डी टूटते देखी कारण कि वह ऐसा गिरता है जैसे । মवचन प्रश्न : गिरना भी नहीं है ? उत्तर : हाँ, गिरना भी नहीं है, तो चोट नहीं खाओगे। दूसरा जब हमला करे तो तुम पी जाना उसके हमले को । तुम राजी हो जाना। ठीक सामायिक का मतलब भी यही है कि चारों तरफ से चित्त परं बहुत तरह के हमले हो रहे हैं। विचार हमला कर रहा है, क्रोध हमला कर रहा है, वासना हमला कर रही है । सबके लिए राजी हो जाना; कुछ करना ही मत। जो हो रहा है, होने देना । और चुपचाप पड़े रहना । एक क्षण को भी अगर यह हो जाए तो सब हो गया । मगर हम करने को इतने आतुर हैं कि विचार आया नहीं कि हम उस पर सवार हुए। या उसके साथ गए, या उसके विरोध में गए। हम बिल्कुल तैयार ही है लड़ने को । मैं जब समझना चाहूँ तो यही कह सकता कि कुछ मत करना । जो हो रहा हो उसको एक घड़ी भर देखना । तेईस घंटे हम कुछ करते ही हैं। एक घंटा कर लेना कि कुछ नहीं करेंगे; बैठे रहेंगे; जो होगा होने देंगे। देखेंगे कि यह हो रहा है। इसे सिर्फ देखना है । साच्ची रह जाना है। साक्षी भाव ही सामायिक में प्रवेश दिला देता है ।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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