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________________ ३२२ महावीर : मेरी दृष्टि कुछ व्यवस्थापरक मस्तिष्क होते हैं जो सदा व्यवस्था देते रहते हैं। वह किसी भी चीज को व्यवस्थित कर देते हैं। कुछ चीजें ऐसी हैं जो व्यवस्था में ही मर जाती है। असल में जीवनबोध की कोई भी चीज व्यवस्था में ही मर जाती है। मेरा कहना है कि व्यवस्था मत देना। क्योंकि व्यवस्था दी तो जिनके समझ में भी कभी आ सकता था उनकी समझ में भी कभी नहीं आएगा फिर । इसलिए उसको अव्यवस्थित ही छोड़ देना। जैसा है वैसा ही छोड़ देना। प्रश्न-अगर करना हो 'सामायिक' तो क्या कहेंगे? सामायिक करेंगे या नहीं? . उत्तर-नहीं, बिल्कुल नहीं करेंगे। . उसका मतलब इतना है कि कुछ देर के लिए कुछ भी नहीं करना है। जो हो रहा है, होने देना है। विचार आते हैं, विचार आने दो। भाव आते है, माने दो। हाथ हिलते हैं, हिलने दो। करवट बदलना है, बदलने दो। सब होने दो। थोड़ी देर के लिए कर्ता मत रहो बस साक्षी रह जाओ। जो हो रहा है, होने दो; कुछ मत करो। जो व्यवस्था उत्पन्न होगी, वह सामायिक है। यानी सामायिक के लिए कुछ भी नहीं करना है। अगर आप कुछ भी न कर रहे हों थोड़ी देर तो हो ही जाएगा। सामायिक तब होगी जब आप बिल्कुल ही अप्रयास में पड़ेंगे। जैसे कभी आपने ख्याल किया हो किसी का नाम आपको भूल गया है और आप कोशिश कर रहे हैं याद करने की और वह याद नहीं आ रहा है, . फिर माप ऊब गए और थक गए और आपने कोशिश छोड़ दी और आप दूसरे काम में लग गए और अचानक वह नाम याद आ गया है। तो अब अगर कोई कहे कि हमें किसी का नाम भूल जाए और उसे याद करना हो तो हम क्या करें उससे हम यह कहेंगे कि कम से कम नाम याद करने की कोशिश मत करना। तो वह कहेगा कि हमको नाम हो तो याद करना है और माप यह क्या कहते है ? तो उससे हम कहेंगे कि नाम याद करने की कोशिश मत करना तो नाम याद मा जाएगा । और तुमने कोशिश की तो मुश्किल में पड़ जाओगे क्योंकि तुम्हारी कोशिय अशान्त कर देती है मस्तिष्क को। तो उसमें से जो जाना चाहिए वह भी नहीं आ पाता । मस्तिष्क सस्त हो जाता है। जुजुत्सू एक कला होती है युख की, लड़ाई की, कुरती की। बाम तौर से जब दो बारमियों को लड़ने के लिए हम सिखाते है, तो हम कहते हैं कि तुम दूसरे पर हमला करना । लेकिन जुजुत्सू में वह सिखाते है कि तुम हमला मत करना । जब दूसरा तुम्हारी यंती में धूसा मारे तो उसके भूसे के लिए मह
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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