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________________ प्रवचन-१० ३१९ उसने दरवाजा बंद कर लिया। मैंने कहा कि कल जब वह सुबह आए तो उसके सामने ही मुझसे पूछना। सुबह वह बुढ़िया आई और मेरे पैर पकड़कर हंसने लगी और कहने लगी: रात बड़ा मजा हुआ। आपने सुबह कितना समझाया कि ध्यान करना नहीं है और हमारा यह वकील कहता है : ध्यान करने चलो। तो मैंने उससे कहा कि तू जल्दी से जा यहाँ से क्योंकि करने वाला रहेगा तो कुछ न कुछ गड़बड़ करेगा। तू जल्दी से जा यहाँ से । तू ध्यान कर। और जैसे ही यह बाहर आया, मैंने दरवाजा बंद कर लिया और मैं ध्यान में चली गई। और आपने ठीक कहा। 'करने से नहीं हुआ। वर्षों तक नहीं हुमा करने से और कल रात हुआ क्योंकि मैंने कुछ नहीं किया। बस में पड़ गई, जैसे मर गई हूँ। पड़ी रही, और हो गया। और यह कहता था ध्यान करने चलो। यह इधर ध्यान करने आया और मैं उधर ध्यान में गई और यह चूक गया। आप इसको समझामो कि वह करने की बात भूल जाए। करने की बात हमें नहीं भूलती, किसी को भी नहीं भूलती। इसलिए मुझे भी समझने में आप निरन्तर चूक जाते है कि मैं क्या कह रहा हूँ। महावीर को समझने में भी लोग निरन्तर चूके हैं कि वे क्या कह रहे है। • एक छोटी सी घटना है। लाओत्से एक जंगल से गुजर रहा है। उसके साथ उसके कुछ शिष्य हैं। किसी राजा का महल बन रहा है और जंगल में -हर वृक्ष की शाखाएं काटी जा रही है, तने काटे जा रहे हैं, लकड़ियां काटी जा रही हैं । पूरा जंगल कट रहा है। सिर्फ एक वृक्ष है बहुत बड़ा जिसके नीचे हजार बैलगाड़ी ठहर सकती हैं। उस वृक्ष की किसी ने एक शाखा भी. नहीं काटी है। लामोत्से ने अपने शिष्यों से कहा कि जरा जामो, उस वृक्ष से पूछो कि इसका रहस्य क्या है । जब सारा जंगल कट रहा है तो यह वृक्ष कैसे बच गया है। इस वृक्ष के पास जरूर कोई रहस्य है। जाओ, जरा वृक्ष से पूछ कर आओ। शिष्य दरख्त का चक्कर लगा कर आते है और लोट कर कहते हैं कि हम चक्कर लगा आए मगर वृक्ष से क्या पूछे ? यह बात जरूर है कि वृक्ष बड़ा भारी है, किसी ने नहीं काटा. उसे । बड़ी छाया है उसकी, बड़े पत्ते हैं उसके। बड़ी दूर से मा आकर पक्षी विश्राम करते है। हजारों बैलगाड़ियां नीचे ठहर सकती है। लामोत्से ने कहा तो भामो, उन लोगों से पूछो जो दूसरे वृक्षों को काट रहे है कि इसको क्यों नहीं काटते । रहस्य जरूर है उस वृक्ष के पास। तो गए हैं और एक बढ़ई से उन्होंने पूण-है कि तुम इस वृक्ष को क्यों नहीं काटते। उस बढ़ई ने कहा है
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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