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महावीर : मेरी दृष्टि में
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कहा : लेकिन इतने दिन से क्यों नहीं हो सका । उसने कहा तू इतने दिन से कोशिश में लगा रहा। आज तू कोशिश में नहीं था। आज तू ऐसे आकर बैठा था कि विदा लेनी है । हैरीगेल ने कहा : 'हीं, में आज तक देख ही नहीं सका आपको । आज मैंने पहली दफा देखा कि तीर चल रहा है और आदमी मौजूद नहीं है। फिर में उठा । मैं यह भी नहीं कह सकता कि क्यों उठा ? उठ गया । तीर हाथ में आ गया । तीर चल गया।' गुरु ने कहा : अब मैं तुझे लिखकर दे सकता हूँ। वैसे एक ही दिन काफी है। बात खत्म हो गई । तुझे समझ में आ गया फर्क । न हम कर्ता हैं, न हम अकर्ता हैं । एक क्षण भी अकर्ता हो जाएं तो बात खत्म हो गई। एक क्षण श्रकर्ता का ही 'सामायिक' का क्षरण है । एक और घटना मुझे याद आती है ।
चीन में एक हुईहाई फकीर हुआ। वह अपने गुरु के पास जाकर कहता है कि मुझे मोक्ष पाना है, सत्य पाना है । गुरु कहता है : जब तक पाना है तब तक कहीं और जा । जब पाना न हो तब मेरे पास आना । उसने कहा जब मुझे पाना नहीं होगा तो मैं आपके पास क्यों आऊंगा ? गुरु कहता है : 'मत आना ।' लेकिन जब तक पाना है तब तक मुझसे क्या 'लेना-देना' क्योंकि पाने की भाषा तनाव की भाषा है। जब तक तू कहता है : 'पाना है तो पाना होगा भविष्य में । तू होगा आज में। और तेरा मन खिचेगा भविष्य तक । तनाव हो जाएगा' । वह गुरु से पूछता है : आप कुछ पाने के लिए नहीं करते ? गुरु कहता है 'नहीं, जब तक हम पाने के लिए करते थे नहीं पाया । जिस दिन पाना छोड़ दिया, उस दिन पा लिया। मेरे बूढ़े गुरु ने मुझसे कहा था कि 'खोजो और खो दोगे । मत खोजो, और पा लो ।' तब में भी नहीं समझता था कि मामला क्या है 'मत खोजो और पा लो ।' 'खोजोगे और खो दोगे ?' गुरु ने जब मुझसे कहा था तो मैंने कहा कि यह तो बिल्कुल पागलपन की बात है । खोजेंगे नहीं तो पाएंगे कैसे गुरु ने मुझसे कहा था कि तुम खोजते हो इसीलिए खो रहे हो क्योंकि जिसे तुम खोजते हो उसे तुम पाए ही हुए हो । एक क्षरण तुम सोज को रोको, दोड़ को रोको, ताकि तुम देख सको कि
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तुम्हें क्या मिला हुआ है। तो गुरु ने कहा: 'मैं भी तुझसे कहता हूँ कि जब तक पाना हो तू कहीं और खोज ले। और जब न पाना हो तब आ जाना । वह युवक कई आश्रमों में भटकता फिरा । कई जगह खोज की। थक गया, परेशान हो गया, कहीं कुछ मिला नहीं, कहीं कुछ पाया नहीं । थका-मांदा वापस लौटा। तब गुरु ने पूछा : 'क्या इरादे हैं । और खोजो ?' वह कहता है :