SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चाहते थे। मैंने फूल जमाए नहीं। मेरा उन्होंने उपयोग ले लिया और फूल जम गए । तो फूल जमाने से भी सिखाते हैं, तलवार चलाने से भी सिखाते हैं, तीर चलाने से भी सिखाते हैं। हैरीगेल जिस गुरु के पास गया वह धनुविधा से ध्यान सिखाता था। तीन साल तक हैरीगेल ने धनुर्विद्या सीखी। उसके निशाने अचूक हो गए। लेकिन गुरु रोज कहता है : नहीं, अभी कुछ भी नहीं हुआ है। तो हैरीगेल कहता है कि मैं परेशान हो गया तीन साल मेहनत करते-करते । मेरा एक निशाना भी नहीं चूकता है और आप कहते हैं : कुछ नहीं हुआ है। गुरु कहता है : निशाने से लेना-देना क्या है ? अभी तीर तू चलाता है, वह चलता नहीं है। निशाने से क्या मतलब ? निशाना लगे न लगे यह गौण बात है। और निशाना क्यों न लगेगा? निशाना लगेगा। निशाने से कुछ लेना-देना नहीं है। लेकिन तू तीर चलाता है, तोर अभी चलता नहीं। तीन साल परेशान हो गया हैरीगेल । जो भी देखने आता, वह कहता हैरोगेल अद्भुत हो तुम ! उसका कोई निशाना नहीं चूकता लेकिन उसका गुरु रोज कह देता 'नहीं, अभी कुछ नहीं हुआ है।' आखिर थक गया है हैरीगेल । और उसने कहा : अब जमा करें। अब मैं लौट जाऊं। लेकिन गुरु ने कहा : सर्टिफिकेट नहीं दे सकूँगा। इतना लिख सकता हूँ कि तीन साल मेरे पास रहा लेकिन असफल लौटता है। वह कहता है कि सब निशाने ठीक लगते हैं। गुरु ने कहा निशाने से हमें कोई मतलब ही नहीं। हम तुझे देख रहे हैं । दूही ठीक नहीं है क्योंकि तू बभी तक ऐसा नहीं हो पाया है कि तीर चले । अभी दू तीर चलाता है। हैरीगेल पश्चिमी आदमी है। उसकी समझ से बाहर है बिल्कुल ही यह बात । वह लिखता है अपनी किताब में : मेरो समच के ही बाहर है कि तीर चलेगा ही कैसे जब तक मैं न चलाऊंगा। यह निपट बकवास मालूम पड़ती है कि तीर अपने आप बजे। और वह कहता है ऐसा चलाओ जैसा कि तुमने न चलाया हो। बस तीर चल जाए । तुम बीच में मत आमओ, तुम क्रिया मत बनो, तुम कर्ता मत बनो। थक गया वह । आखिर तीन साल बाद उसने कहा कि मैं कल टिकट बुक करवा आया हूँ । मैं वापस जा रहा हूँ। गुरु ने कहा : जैसी तुम्हारी मर्जी। दूसरे दिन सांझ को हवाई जहाज चलना है। सुबह वह अन्तिम बिदा लेने गुरु के पास जाता है। गुरु दूसरे शिष्यों को तीर चलाना सिखाता रहा है। हैरीगेल एक बेंच पर बैठ गया है। उसके गुरु ने तोर उठाया है। तीर चलाया है। हरीमेल एकदम से खड़ा हो गया है। गया है गुरु के पास विना बोने । धनुष हाथ में लिया है। तोर पलाया है। गुरु ने कहा मैक: वीर चल गया। हरीगेल ने
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy