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________________ २८३ दिया कि जहां जो बताता है, वहाँ वह है उस वक्त तब फिर बड़ा मुश्किल हो गया । लेकिन वह आदमी घबड़ा गया था और उस आदमी को बड़ी मुविकल हो गई थी । उस आदमी के सिर का आपरेशन करना पड़ा ताकि उसे दिन में तारे दिखाई पड़ना बंद हो जाएं । प्रवचन - और उसे ऐसा लगा कि देखा कि अस्पताल में रहा है । चोट लगने से था, दस मील आस-पास के किसी भी बंद करने का कोई उपाय नहीं था । गई । और जब और डाक्टरों ने 1 एक आदमी दूसरे महायुद्ध में चोट खाया, अस्पताल में भर्ती किया गया आस-पास कोई रेडियो चला रहा है। उसने सब तरफ कोई रेडियो नहीं चल रहा है लेकिन उसे साफ सुनाई पड़ उसका कान इस भांति हो गया कि वह जिस नगर में स्टेशन को उसका कान पकड़ने लगा और उस आदमी के पागल होने की नौबत आ पकड़ने लगा वह ध्वनियां, पहले तो शक हुआ किन्तु जब नर्सोंकहा कि तुम पागल तो नहीं हो गए हो, यहां तो कोई रेडियो नहीं, यह शान्त भूमि है, यहाँ कोई रेडियो बज ही नहीं सकता, यहाँ कोई यदि आवाज हो तो हमको भी आनी चाहिए । तब उसने कहा कि की कड़ी आ रही है । वे लोग आगे गए, जाकर सामने के होटल में रेडियो खोला । कड़ियाँ जा रही थीं। फिर उन्होंने ताल-मेल बिठाया । जिस नगर में. हुई थी यह घटना वह उस नगर के स्टेशन को पकड़ लेता था । उसके मस्तिष्क का एक हिस्सा सक्रिय हो गया था, जो हमारा सक्रिय नहीं है । तब उसका आपरेशन करना पड़ा। अगर उसका वह हिस्सा सक्रिय रहता तो उसकी जिन्दगी मुश्किल हो जाती । क्योंकि रेडियो को तो हम बंद कर सकते हैं, लेकिन विचार को बंद नहीं कर सकते । वह चलता चला जाएगा । फलां-फलाँ गीत 1 हमारे मस्तिष्क की सम्भावनाएँ अनन्त हैं । लेकिन स्वभावतः जितनी सम्भावनाएँ प्रकट हुई हैं उन सबके आगे अंधकार मालूम पड़ता है । वह मालूम पड़ेगा ही । यह जो अभी रूस में एक वैज्ञानिक है फयादेव उसने एक हजार मील दूर तक टेलीपैथिक संदेश भेजकर नए चमत्कार उपस्थित किए हैं । और, उस में यह बात बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि रूस इस तरह की बातों पर अनायास विश्वास करने के लिए कतई तैयार नहीं है । फयादेव ने मास्को में बैठकर एक हजार मील के फासले पर तिफिलस नगर के एक व्यक्ति से अपना संबंध स्थापित किया है। उसके मित्र एक बगीचे की झाड़ी में छिपे हुए हैं और वायरलेस से सम्बन्ध है उनका । वह मित्र फयादेव से कहते हैं कि दस नम्बर की बैंच पर एक आदमी आकर बैठा है । तुम उसे मास्को से सुझाव देकर सुला दो । फयादेव
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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