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महावीर : मेरी दृष्टि में ऐसी किताबें हैं, ऐसे नक्शे बनाए हैं, लोगों ने कि कौन किसके ऊपर खड़ा है। वहां भी कौन आगे हैं, कौन पीछे है, कौन किस खण्ड में पहुंच गया है। वे साधारण लोगों की दुनिया और साधारण लोगों के ख्याल है। वे वहां भी वही सोक रहे हैं। वहां कोई ऊँचा नहीं है, कोई नीचा नहीं है। ___असलू में ऊंचा और नीचा जहां तक है, वहां तक 'दिया है। बड़ा और छोटा जहां तक है, वहां तक 'दिया' है । ज्योति बड़ी और छोटी होती नहीं। ज्योति या तो ज्योति होती है या नहीं होती। 'ज्योति बड़ी और छोटी का क्या मतलब है ? और निराकार में खो जाने की क्षमता छोटी ज्योति की उतनी ही है, जितनी बड़ी से बड़ी ज्योति की और निराकार में खो जाना ही असाधारण हो जाना है। तो छोटी ज्योति कौन ? और बड़ी ज्योति कोन ? छोटी ज्योति धीरे-धीरे खोती है, बड़ी ज्योति जल्दी खो जाती है यह वैसे ही भूल है, इसे थोड़ा समझ लेना उचित होगा। • हजारों साल तक ऐसा समझा जाता था कि अगर हम एक मकान की छत पर खड़े हो जाएं और एक बड़ा पत्थर गिराएं और एक छोटा पत्यरएक साथ, तो बड़ा पत्थर जमीन पर पहले पहुंचेगा और छोटा पत्थर पीछे । हजारों साल तक यह ख्याल था किसी ने गिराकर देखा नहीं था, क्योंकि. बात इतनी साफ सीधी मालूम पड़ती थी और उचित तर्कयुक्त कि कोई यह कहता भी कि चलो जरा छत पर गिराकर देखो तो लोग कहते पागल हो । इसमें भी कोई सोचने की बात है। बड़ा पत्थर पहले गिरेवा, बड़ा है, ज्यादा वजन है। छोटा, पीछे गिरेगा। बड़ा पत्थर ? बड़ा पत्थर जल्दी आएगा। छोटा पत्थर धीरे आएंगा। लेकिन, उन्हें पता नहीं था कि बड़ा पत्थर छोटे पत्थर का सवाल नहीं है गिरने में सवाल है ग्रेवीटेशन का, सवाल है जमीन की कशिश का। और वह कशिश दोनों पर बराबर काम कर रही है। छोटे और बड़े का उस कशिश के लिए भेद नहीं। तो जब पहली दफा एक आदमी ने चढ़कर "पिसा' के टावर पर गिराकर देखा, वह अद्भुत आदमी रहा होगा। गिराकर देखे दो पत्थर छोटे और बड़े। और जब दोनों पत्थर साथ गिरे तो वह खुद ही चौंका । उसको भी विश्वास न आया होगा। बार-बार गिराकर देखा कि पक्का हो जाए, नहीं तो लोग कहेंगे पागल हो गया है-ऐसा नहीं हो सकता है। और जब दौड़कर उसने विश्वविद्यालय में खबर दी, जिसमें कि वह अध्यापक था, तो अध्यापकों ने कहा कि ऐसा कभी नहीं हो सकता। छोटा और बड़ा पत्थर साथ-साथ