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प्रवचन -१
में वही विशिष्ट है जो आकार को खोकर निराकार में चला गया है । यही है विशिष्टता ।
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हम अविशिष्ट हैं । हम साधारण हैं । साधारण इस अर्थ में कि वह घटना अभी नहीं घटी। दुनिया में दो! ही तरह के लोग हैं - साधारण और अस्तधारण । साधारण से मेरा मतलब है जो अभी सिर्फ दिया है, ज्योति बन सकते हैं । साधारण असाधारण का अवसर है, मौका है, बीज है । और असाधारण वह है जो ज्योति बन गया और गया वहां, उस घर की तरफ जहां पहुँच कर शान्ति है, जहां आनन्द है, जहां खोज का अन्त है और उपलब्धि । इसलिए जब मैं विशिष्ट कह रहा हूं तो मेरा मतलब यह नहीं कि किसी से विशिष्ट । विशिष्ट जब मैं कह रहा हूँ तो मेरा मतलब है -- साधारण नहीं असाधारण । हम सब साधारण हैं । हम सब असाधारण हो सकते थे । और जब तक हम साधारण हैं, तब तक हम साधारण और असाधारण के बीच जो भेद खड़े करते हैं, वह एकदम नासमझी के हैं ।
साधारण बस साधारण ही है । वह चपरासी है कि राष्ट्रपति, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । यह साधारण के हो दो रूप हैं । चपरासी पहली सीढ़ी पर और राष्ट्रपति आखिरी सीढ़ी पर । चपरासी भी चढ़ता जाए तो राष्ट्रपति हो
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जाए और राष्ट्रपति उतरता जाए तो चपरासी हो जाए। चपरासी चढ़ जाते हैं,
राष्ट्रपति उतर आते हैं । दोनों काम चलते हैं । यह एक ही सीढ़ी पर सारा खेल है - साधारण की सीढ़ी पर । साधारण की सीढ़ी पर सभी साधारण हैंचाहे वह किसी भी पायदान पर खड़े हों - नम्बर एक की कि नम्बर हजार की कि नम्बर शून्य की । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। एक सीढ़ी साधारण कीं है और इस साधारण की सीढ़ी से जो छलांग लगा जाते हैं, वे असाधारण में पहुंच जाते हैं ।
असाधारण की कोई सीढ़ी नहीं है । इसलिए असाधारण दो व्यक्तियों में नीचे-ऊपर कोई नहीं होता । फिर कई लोग पूछते हैं कि बुद्ध ऊंचे कि महावीर, कृष्ण ऊंचे कि क्राइस्ट । तो वे अपनी साधारण को सीढ़ी के गणित से असाधारण लोगों को सोचने चल पड़े। और ऐसे पागल हुए हैं कि किताबें भी लिखते हैं कि कौन किससे ऊंचा । और उन्हें पता नहीं कि ऊंचे और नीचे का जो ख्याल है, साधारण दुनिया का स्याल है । असाधारण ऊंचा श्रीर नीचा
नहीं होता । असल में जो ऊंचे-नीचे की दुनिया से बाहर चला जाता है, -वही असाधारण है । तो भला कैसे तोलें कि कबीर कहां कि नानक कहां, और