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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-८
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तुम्हें दर्शन हुआ फूल का, बमी भान नहीं हुआ। जब दर्शन को तुम समझने की कोशिश करोगे तुम कहोगे गुलाब का फूल है ! बड़ा सुन्दर है। यह भान हुआ। जब दर्शन को तुम बांधते हो तब वह मान बन जाता है। और फिर तुमने फूल तोड़ा और उसकी सुगन्ध नी । यह चरित्र हुवा। वरांन जब पता है तबमाल बन जाता है। जान जब प्रकट होता है तब पारित हो जाता है। चरित्र अन्तिम है-प्रथम नहीं। दर्शन प्रथम है। जीवन का सत्य क्या है इसका दर्शन चाहिए। वह ध्यान से होगा, समाधि से होगा। इसलिए साधना ध्यान और समाधि की है । दर्शन उसका फल है। जब दर्शन हो जाएगा और तुम सचेत हो जाओगे दर्शन के प्रति तब ज्ञान निर्मित होगा। जब तुम उससे अन्यथा आचरण नहीं कर सकते हो तब तुम्हारा आचरण सम्यक् हो जाएगा।
प्रश्न : वह माचरण किस रूप में होगा?
उत्तर : वह कई रूपों में हो सकता है क्योंकि माचरण बहुत सी चीजों पर निर्भर है। वह सिर्फ तुम पर निर्भर नहीं है। जीसस में एक तरह का होगा, कृष्ण में एक तरह का होगा, महावीर में एक तरह का होगा। वर्शन बिल्कुल एक होगा। ज्ञान में मेव पर जाएगा क्योंकि उस दर्शन को शान बनाने वाला प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग है। जगत् के जितने अनुभूति-उपलब्ध व्यक्ति है सबका दर्शन एक है। लेकिन शान सबका अलग होगा। मतलब यह कि उनकी भाषा, उनके सोचने का ढंग, उनकी शब्दावली, वह सबकी सब शान बनेगी। फिर ज्ञान आचरण बनेगा। आचरण भी भिन्न होगा। जैसे समझ लें कि अगर आज महावीर न्यूयार्क में पैदा हों तो वह नंगे नहीं खड़े होंगे क्योंकि न्यूयार्क में नंगे बड़ा होने का एक ही परिणाम होगा कि पागलं खाने में बन्द करके उनका इलाज किया जाए। इस स्थिति में उनका आचरण नग्न होने का नहीं होगा। जिस स्थिति में वे भारत में थे, उस दिन नग्नता पागलपन का पर्याय नहीं थी, संन्यास का पर्याय पो।
प्रश्न : उत्तरी ध्रुव में यह मांस भी ला सकते हैं, अगर ऐसा हो ?
उत्तर : सम्भव है। लेकिन मैंने कल रात को बात कही अगर आपने सुनी है तो उत्तरी ध्रुव में मांस नहीं खाएंगे-अगर उन्हें. मूक जगत् से सम्बन स्थापित करना है तो वह मांस नहीं जा सकते। और अगर सम्बन्ध स्थापित न करना हो तो वे मांस खा सकते है और मोष हो सकता है। मांस खाने से मोष का कोई विरोध नहीं है। लेकिन तब वह मनुष्य से ही सम्बन्ध स्थापित