________________
२३३
-ओर 'जैन' शब्द महावीर के साथ प्रकट हुए और दो स्थितियां हुई - एक तो आर्यमूलधारा से श्रमणधारा टूट गई और श्रमणवारा में भी नए पंथ हो गए जिनमें जैन एक पंथ बना। इसलिए महावीर के पहले तीर्थंकर हिन्दू संघ के भीतर हैं । महावीर पहले तीर्थंकर हैं जो हिन्दू संघ के बाहर खड़े होते हैं । समय लगता है किसी विचार को पूर्ण स्वतन्त्रता उपलब्ध करने में । वह
समय लगा ।
सर-प्रवचन-द
दूसरी बात यह कि महावीर निश्चित ही किसी के अनुयायी नहीं है। उनका कोई गुरु नहीं है । पर उन्होंने जो कहा, उनसे जो प्रकट हुआ, उन्होंने जो संवादित किया वह जो तेईस तीर्थंकरों के अनुयायी चले आते थे, उनसे बहुत दूर तक मेल खा गया । महावीर को चिन्ता भी नहीं है कि वह मेल खाए । वह मेल खा गया यह संयोग की बात है। नहीं मेल खाता तो कोई चिन्ता की बात न थी । वह मेल खा बया । और वे अनुयायी धीरे-धीरे महावीर के पास आ गए। और दूसरे लोग, जो पार्श्व की परंपरा के जीवित थे, महावीर के करीब आ गए। बहुत बार ऐसा होता है। ऐसा भी नहीं है कि महावीर सब वही कह रहें हैं जो पिछले तेईस तीर्थंकरों ने कहा हो । बहुत कुछ नया भी कह रहे हैं । जैसे किसी पिछले तीर्थंकर ने ब्रह्मचर्य को कोई बात नहीं की है । और पार्श्वनाथ का जो धर्म है वह चतुर्याम है; उसमें ब्रह्मचर्य की कोई बात नहीं है । महावीर पहली बार ब्रह्मचर्य की बात कर रहे हैं । और बहुत सी बातें हैं जो महावीर पहली बार कर रहे हैं । लेकिन वे बातें पिछले तेईस तीथंकरों के विरोध में नहीं हैं, चाहे वे उनको आगे बढ़ाती हों, कुछ जोड़ती हों, उनसे भिन्न हों, उनसे ज्यादा हों लेकिन उनके विरोध में नहीं हैं । इसलिए स्वभावतः उस धारा से संबद्ध लोग महावीर के निकट इकट्ठे हो गए हैं व्यक्ति किसी धारा को यह है कि महावीर के पहले तेईस तीर्थंकर बड़े साधक थे, सिद्ध थे लेकिन जो एक दर्शन निर्मित करता है ऐसा उनमें कोई भी न था । वह है जो उसको उपलब्ध हुआ । इसलिए चौबीसव होते हुए प्रथम हो गए। सबसे अन्तिम होते हुए भी उनकी स्थिति प्रथम हो गई । अगर आज उस विचारधारा का कुछ भी जीवन्त अंश शेष है तो सारा श्रेय महावीर को उपलब्ध होता है । व्यवस्था और दर्शन बनाने वाला एक बिल्कुल अलग बात है । बहुत तरह के विचारक होते हैं। कुछ विचारक ऐसे होते हैं जो खण्ड-खण्ड में सोचते हैं, जो कभी सारे टुकड़ों को इकट्ठा जोड़कर समग्र दर्शन स्थापित नहीं
।
मिल जाए तो वह धारा
और महावीर जैसा बलशाली अनुगृहोत ही होगी । सच तो
महावीर ही व्यक्ति करीब-करीब
भी वह