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________________ २१० महावीर : मेरी दृष्टि में वृक्ष पर आ जाते बल्कि उसको गोद में उतरने लगते, उसके सिर पर बैठ जाते, उसके कंधों को घेर लेते। संत फ्रांसिस से जब भी किसी ने पूछा कि यह कैसे सम्भव हुआ है तो वह कहते : और कोई कारण नहीं है। वे भली भांति जानते है कि मेरे द्वारा उसके लिए कोई भी नुकसान कभी भी नहीं पहुंच सकता । पक्षियों के पास अन्तःप्रज्ञा है जो हमने बहुत पहले खो दी है । जापान में एक ऐसी साधारण चिड़िया है जो गांवों में आम तौर पर होती है और दिन भर गांव में दिखाई पड़ती है, भूकम्प आने पर चौबीस घंटे पहले वह गाँव छोड़ देती है । अभी हमने भूकम्प की जांच पड़ताल के कितने भी उपाय किए हैं, वे भी दो, ढाई घंटे से पहले खबर नहीं दे सकते और वह खबर भी विश्वसनीय नहीं होती। लेकिन वह चिड़िया चौबीस घंटे पहले एकदम गांव छोड़ देती है। उस चिड़िया का गांव में न दिखाई पड़ना पक्का है कि चौबीस घंटे के भीतर भूकम्प आ जाएगा। बड़ी कठिनाई की बात रही कि वह चिड़िया कैसे जान पाती है क्योंकि चिड़िया के पास जानने के कोई यन्त्र नहीं है, कोई शास्त्र नहीं है, कोई विधि नहीं है। ऊपर उत्तरी ध्रुव पर रहने वाले सैकड़ों पक्षी है, जो प्रति वर्ष सर्दी के दिनों में, जब बर्फ पड़ती है तो यूरोप के समुद्री तटों पर चले जाते हैं। बर्फ पड़नी शुरू हो जाए अगर तब वे यात्रा शुरू करें तो उनका आना बहत मुश्किल है। इसलिए बर्फ गिरने के महीने भर पहले वे उड़ान शुरू कर देते हैं। और यह बड़े आश्चर्य की बात है कि वे जिस दिन उड़ान शुरू करते हैं उसके ठीक एक महीने बाद बर्फ गिरनी शुरू हो जाती है। फिर वे हजारों मील का फासला तय करके यूरोप के समुद्र तटों पर आ जाते हैं और बर्फ गिरना बन्द होने के महीने भर पहले वे वापस यात्रा शुरू कर देते हैं। वे कभी भटकते नहीं। हजारों मील के रास्ते पर कभी नहीं भटकते। ये जहां से आते हैं ठीक वहां अपनी जगह वापस लौट जाते हैं। पक्षियों और पशुओं के जगत में जिन लोगों ने प्रवेश किया है वे हैरान हुए हैं कि उनके पास एक प्रज्ञा है जो बिना बुद्धि के उन्हें धोनों को साफ कर देती है। यह जो हमारे हृदय में भाव की धारा उठती है-प्रेम की या घृणा की, उसके स्पन्दन काफी हैं। वे उन्हें स्पर्श कर लेते हैं और वे हमसे सचेत हो जाते हैं। ____महावीर ने. अहिंसा के तत्त्व पर जो इतना बल दिया है, उस बल का और कोई कारण नहीं है। एक कारण यह है कि नोचे के मूक जगत् से पूर्ण अहिंसक वृत्ति के बिना सम्बन्धित होना असम्भव है। और दूसरा कारण यह है कि जब सम्बन्धित हो जाएं तो उस मूक जगत् की इतनी पीड़ानों का बोष होता है
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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