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________________ सत्य की अनुभूति को अभिव्यक्ति कैसे मिले, यही बड़े से बड़ा सवाल महावीर के सामने . इस जन्म में था। महावीर ही पहले शिक्षक नहीं थे जिनके सामने अभिव्यक्ति की बात उठी हो । जिन्होंने सत्य जाना है उन सभी के सामने यह सवाल है लेकिन महावीर के सामने सवाल कुछ बहुत गहरे रूप में उपस्थित हुमा था। महावीर के व्यक्तित्व की विशेषताओं में एक विशेषता यह थी कि उन्हें सत्य की जो अनुभूति हुई, उसको अभिव्यक्ति को उन्होंने जीवन के समस्त तलों पर प्रकट करने की कोशिश की। मनुष्य तक कुछ बात कहनी है, कदिन तो है फिर भी बहुत कठिन नहीं। लेकिन महावीर की चेष्टा भनूठी है। उन्होंने चेष्टा की कि पौधे पशु-पक्षी, देवी-देवता सब तक, जीवन के जितने तल है-उन सब तक उन्हें जो मिला है, उसकी खबर पहुंचे। महावीर के बाद ऐसी कोशिश करने वाला दूसरा आदमी नहीं हुआ। यूरोप में फ्रांसिस ने पोड़ी सी कोशिश की है पक्षियों और पशुओं से बात करने की। अभी-अभी श्री अरविन्द ने कोशिश की है पदार्थ तत्व पर चेतना के स्पन्दन पहुंचाने की। लेकिन महावीर जैसा प्रयास न पहले कभी हुआ, न बाद में हुआ। वे जो बारह वर्ष आम तौर पर सत्य की साधना के लिए समझे जाते हैं, वे सत्य की जो उपलब्धि हुई है, उसकी अभिव्यक्ति के लिए साधन खोजने के हैं । और इसीलिए ठीक बारह वर्षों बाद महावीर सारी साधना का त्याग कर देते हैं। नहीं तो साधना का कभी त्याग नहीं किया जा सकता। सत्य की उपलब्धि को जो साधना है, उसका कभी त्याग किया ही नहीं जा सकता क्योंकि वह ऐसी नहीं है कि सत्य उपलब्ध हो जाने पर व्यर्थ हो जाए। जैसा कि मैंने सुबह कहा सत्य को उपलब्धि का मार्ग है-अमूच्छित चेतना, अप्रमाद, विवेक, जागरण । तो ऐसा नहीं है कि जिसको सत्य उपलब्ध हो जाए वह जागरण, विवेक, अप्रमाद
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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