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________________ २०४ महावीर : मेरी दृष्टि में को परिपूर्ण ज्ञान की क्षमता उपलब्ध होगी वह तत्काल सब दिशाएं छोड़ देगा और परमात्मा में लीन हो जाएगा। जो इस पूर्ण स्थिति में पहुंचता है, जहां सिर्फ जानना ही शेष रह जाता है, वह एकदम डूब जाता है, सर्वव्यापक हो जाता है, हो हो गया, जैसे कि एक बूंद सागर में गिरी और सर्वव्यापी हो गई। क्योंकि वह सागर से एक ही हो गई। और जब तक वह दिशा पकड़े रहता है, तब तक वह सर्वव्यापी नहीं होता। जीसस ने कहा कि जो अपने को बचाएंगे, वे नष्ट हो जाएंगे। जो अपने को खो देंगे, वे सब पा लेंगे। बचाओ मत, अपने को खो दो। लेकिन खो वही सकता है जिसका कोई विकास नहीं। किनारा खोने की हिम्मत होनी चाहिए। अगर किनारा पकड़े रहें तो सागर में कैसे जाएंगे। दिशाओं के किनारे होते हैं, आयाम होता है मगर परमात्मा अनन्त और आयामशून्य है । वहाँ कोई किनारा नहीं है। उसमें खोने की क्षमता का ही अर्थ केवल-ज्ञान है जहाँ आदमी डूब जाता है फिर जानने की कोशिश में नहीं पड़ता। यहां दो सम्भावनाएं हैं : या तो वह डूब जाए परमात्मा में जो सामान्यतया होता है; या एक जीवन के लिए वह लौट आए और जहां पहुंचा है उस क्षमता की खबर दे। उसी को मैं करुणा कहता हूँ : और वह करुणा है तो उसे अभिव्यक्ति की पूर्णता पानी होगी। उपाय करना होगा दूसरे से कहने का। गूंगा भी जान सकता है सत्य को लेकिन वह कह नहीं सकता। गूंगा भी प्रेम कर सकता है लेकिन वह कह नहीं सकता। अगर गूंगे को कहना हो अपनी प्रेयसी से कि मैं तुझे प्रेम करता है तो उसे वाणी सोखनी पड़ेगी। प्रेम करने के लिए वाणी सीखने की जरूरत नहीं है। प्रेम करना एक और बात है । वह गूंगा भी कर सकता है। गूंगा हजारों से कुछ बातें कर सकता है। लेकिन अगर उसे कहना हो, क्या जाना उसने प्रेम में, तो फिर उसे और दूसरी तरह की, यानी अभिव्यक्ति की, पूर्णता प्राप्त करनी होगी। महावीर इस जन्म में उस दूसरी तरह की पूर्णता की साधना में लगे हैं।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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