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________________ १९६ महावीर : मेरी दृष्टि में साधु था एथेन्स नगर में। उस साधु पर मुकदमा चला। उसकी बातों को एथेन्स नगर के न्यायाधीशों ने कहा कि लोगों को बिगाड़ देने वाली हैं। इसलिए • हम तुम्हें नगर निकाला देते हैं, नगर से बाहर किए देते हैं । साधु नगर से निकाल दिया गया । वह एथेन्स छोड़कर दूसरे नगर में चला गया। दूसरे नगर के लोगों ने उसका बड़ा स्वागत किया क्योंकि उस साधु की जो मान्यताएं थीं उस नगर के लोगों से मेल खा गई। उस नगर का एक नियम था कि जो भी नया आदमी उस नगर में मेहमान बने, सारा नगर मिलकर उसका मकान बना दे। तो राज ने इंटे जोड़ दी, ईंटें बनाने वाले ने ईंटें ला दीं। पत्थर वाला पत्थर लाया, बढ़ई लकड़ी लाया। खपरा लाने वाला खपरा लाया। सारे ग्राम के लोगों ने श्रम किया। जल्दो ही उसका एक मकान बन गया। प्रवेश होने क तैयारी हो रही है। साधु द्वार पर आया। तभी गांव एकदम मकान पर टूट पड़ा। छप्पर वाला छप्पर ले गया, ईंट वाला ईंट ले गया, दरवाजे वाला दरवाजा निकालने लगा। सब चीजें एकदम अस्त-व्यस्त होने लगों। सारा मकान एकदम टूटने लगा। तब साधु ने खड़े होकर पूछा कि यह क्या बात है ? मुझसे कोई गलती हो गई क्या ? तो जो लोग सामान ले जा रहे थे उन्होंने कहाँ नहीं, तुम्हारी गल्ती का सवाल नहों। हमारा संविधान बदल गया। कल तक हमारे विधान में यह बात थी कि जो भी नया आदमी गांव में आए और रहे उसका हम मकान बनाएं। रात की धारासभा में वह हमने खत्म कर दिया। हमारा विधान बदल गया । इसलिए हम अपना-अपना सामान लिए जा रहे हैं। बात खत्म हो गई । अब तुम्हारा प्रवेश हो जाता तो मुश्किल हो जाता । इसलिए हमें जल्दी करनी पड़ रही है। तुम्हारे प्रवेश के बाद पुराना संविधान लागू हो जाता। अभी तुम्हारा प्रवेश नहीं हुआ, इसलिए हम इसे लिए जा रहे हैं । मित्र ने मुझे यह कहानी लिखी और यह पूछा : क्या साधु की कोई भूल थी । मैंने उत्तर दिया कि साधु की एक ही भूल थी। उसने आदमियों के बनाए हुए नियम को ज्यादा मूल्य दिया था। जो आदमी नियम बनाते हैं वे कभी भी तोड़ सकते हैं। साधु की भूल इतनी ही थी कि उसने यह भी क्यों पूछा कि क्या मुझसे कोई भूल हो गई है ? यह भी नहीं पूछना था। उसे जानना चाहिए था कि जो मकान बनाते हैं, वे गिरा सकते हैं। नियम बदल गया था। साधु ने नियम को अपना सम्मान समझ लिया था यह भूल हो गई थी उससे । यह उसका सम्मान नहीं था, यह सिर्फ नियम का सम्मान था। नियम बदल गया, सारी बात खत्म हो गई।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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