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________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-६ १८५ से लाये थे; सुबह ढूंढेगा, परेशान होगा, इतनी खबर कर देनी चाहिए कि एक बोरा ले जाते हैं। __ अब इस आदमी को समझना हमें बड़ा मुश्किल हो जाएगा। इसके चोरो करने में भी इतना अद्भुत पुण्य है क्योंकि उसे यह भाव ही खो गया है कि क्या दूसरे का है, क्या अपना ? कबीर जैसा व्यक्ति अगर चोरी करने भी चला जाए तो भी पुण्य है। और हम जैसा व्यक्ति अगर दान भी करता हो तो भी चोरी है। क्योंकि दान में भी हमारी जो वृत्ति और मूर्छा होगी, वह चोरी की है । दान में भी हमें लगता है कि यह मेरा है और इसे मैं दे रहा हूँ । और कबीर को चोरी में भी नहीं लगता कि वह दूसरे का है और मैं ले रहा हूँ। यह जो फर्क हमें ख्याल में आ जाए तो वह दान हमारा पाप है क्योंकि उसमें 'मेरा' मौजूद है । और कबीर की चोरी को कोई परमात्मा कहीं बैठा हो तो पाप नहीं कह सकता क्योंकि वहाँ 'मेरा' नहीं है। हाँ इतनी बात थी कि घर के लोगों को खबर कर देनी थी, नहीं तो सुबह बेचारे ढूंढेंगे। वह जो खबर करवाने भेजी है, वह इसलिए नहीं कि चोरी बुरी चाज है, बल्कि इसलिए कि सुबह घर के लोग व्यर्थ में ही धूप में परेशान होंगे, खोजेंगे कि कहां चला गया बोरा । इतना जगाकर तू खबर कर आ, मैं घर चलता हूँ । ' यह जो ऐसा बहुत बार हुआ है हमें समझना मुश्किल हो जाता है। अब जैसे कृष्ण ही हैं । अर्जुन समझ नहीं पाया कृष्ण को। अर्जुन समझ लेता तो बात ही और होती । अर्जुन भाग रहा है कि "ये मेरे प्रिय जन हैं, मर जाएंगे।" कृष्ण उसे कहते हैं : “पागल, कभी न कोई मरता है न कोई मारता है।" अब कृष्ण किस तल पर खड़े होकर कह रहे हैं, अर्जुन को कुछ खबर नहीं। अर्जुन जिस तल पर खड़ा है, वही समझेगा न ? अर्जुन समझ रहा था-'मेरे है।' कृष्ण कहते हैं-'कौन किसका है', यह दो बिल्कुल अलग तलों पर बात हो रही है । और मैं समझता हूँ कि गोता को पढ़ने वाले निरन्तर इस भूल में पड़े हैं। क्योंकि बिल्कुल, भिन्न तलों पर यह बात हो रही है । अर्जुन कहता है-"ये मेरे प्रिय जन हैं, मेरे गुरु हैं। मेरे रिश्तेदार हैं।" कृष्ण कहते हैं : "कौन किसका है ? कोई किसी का नहीं है । अपने हो तुम नहीं हो ।' अर्जुन समझ लेता तो फिर ठोक था। मगर उसने गलत समझा। उसने समझा कि जब कोई अपना नहीं है तो मारा जा सकता है। पीड़ा तो अपने की होती है। अर्जुन कहता है कि मर जाएंगे तो पाप, लगेगा। कृष्ण कहते हैं कि न कभी कोई मरा और न कभी किसी ने मारा । शरीर के मारने से कहीं वह मरता है,
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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